Saturday, October 20, 2012


Friday, September 28, 2012

सोचिये क्या यही है महिला जीवन


भारतीय संविधान में लिंग समानता के सिद्धांत में  मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्यों और निर्देशक सिद्धांत  अपने प्रस्तावना में    निहित है,i क़ि संविधान  ना केवल महिलाओं के लिए समानता  का अधिकार  बल्की देश के विकाश में   महिलाओं कि  सकारात्मक भागेदारी कराई जा सके, एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के ढांचे के भीतर हमारी कानून   व्यवस्था विकास की नीतियों और योजनाओं और कार्यक्रमों तथा विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति के उद्देश्य से  ही किया जा सके . 1990 में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना  किया गया, जिसका उद्देश महिलाओं के अधिकारों, कानूनी एंटाइटेलमेंट की रक्षा की जा सके . भारत के संविधान में  73 व और 74 वा संशोधन (1993) किया गया जिससे स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए पंचायतों और नगर पालिकाओं की सीटों के आरक्षण  व्यवस्था प्रदान की गई  है, ताकी  राष्ट्र के  विकाश में अपना निर्णय लेने में उनकी भागीदारी ली जा सके और  हर महिला समाज में एक मजबूत नींव बिछाने में अपना योगदान दे सके
जिसका उद्देश था   महिलाओं के पूर्ण विकास के लिए  एक वातावरण बनाना, उन्हें अपनी पूरी क्षमता का एहसास करना  सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों के माध्यम से उनकी भागीदारी को बढाना,ताकी  सभी क्षेत्रों में समान आधार पर  पुरुषों के साथ  महिलाओं  को  सभी मानव अधिकारों  तथा सभी  मौलिक स्वतंत्रतावोभी  जाये ताकी  राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक बन कर आगे बढाया जा सके सके !
महिलओ के लिया अवसरों क़ि कमी नहीं पर सच तो यहाँ है क़ि आज भी महिला अपने भविष्ये  निर्माण हेतु निर्णय लेने मी सक्षम नहीं कितनी बड़ी हमारे समाज क़ि विडंबना है ! २१सवी सड़के डोरमे जहा महिला चन पर जा रही है वही समाज के माध्यम वर्गी परिवार की  महिलये पहलेसे  अधिक दोधारी तलवारों पर  चलरही है , जहाँ  धार्मिक  बात करे तो महिलओ वो देवि बना कर पूजा  तो जा सकते है पर सम्मान और उनका   हक़ उन्हें   नहीं दिया जा सकता है कस यह विरोधभास है !

इन्ही विचारो को समर्पित मेरी  यह कविता 
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ओ वसुंधर 
कब तक 
और कब तक तुम मौन रहोगी 
त्यागमय 
तपसिवानी
पतिव्रता 
सती-साध्वी 
शर्मीली 
छुईमुई 
बनकर मृग तृष्णा में फंसोगी 
कब तक  ओ मृगनयनी 
तुम कब  तक 
पतिता  
कुलटा
से सजे 
 शब्द भेदी  बादो के ताप को सहोगी 
अब थक गई मेरी  आंखे 
यह सुनते सुनते 
उफ़ उफ़ उफ़ ................
ओ धरा  एकबार सुनो 
कब त्यागीगी  मोह 
कब तोडोगी 
यह अमानवी बढ़िया 
कब तुम गुलामी की कुरीतियों का चोला उतर
सोयम के लिया मेहनतकस  बनोगी 
एक बार  सच में जब तुम स्योम को जान कर 
स्वभिलाम्बी 
स्वतंत्र 
आत्मनिर्भर बन कर 
तब ही 
जनतंत्र के अधिकारों  का भोग कर सकोगी 
क्या तुम्हें  नहीं लगता 
तुम मात्र शरीर नहीं 
नाही कामवाशना   पुर्तिमात्र  ..
ओ  अनन्त उर्जारुपानी 
सोचो 
सोचो 
नजाने कितनी चढ़ गई 
अग्निकी भेट 
नजाने  कितनी मर गई   गर्भी में 
क्या तुमभी गुलामी  की जकड़न को सहना चाहती  हो 
क्या तुम  मानव बनाई इन बेडियो से बहार नहीं आना चाहती 
तुम्हे अजादी नहीं पसंद
सोचो  एकबार जरासोचो 
और मुझे बातो 
तुम क्या  चाहती  हो 

                                                                                                                             मनु मंजू शुक्ला 

Friday, September 21, 2012

अब तो बस जिंदगी तेरे इतना ही शुक्रिया


तुम ने कर दिए वादा साथ चलते रहोगे ताउम्र 

आदतन हम ने तुमपे ऐतबार करलिया 

हर राह पर रुक कर पलट पलट के 

हमने तुम्हारा इंतज़ार किया

आप कहते रहे रोने से ना बदले किसी के हालत
 ताउम्र अब न रोयेगे, यह हमने ख़ुद से लो ये अब वादा कर दिया
 बार बार जीने की हबस में
 जीने की दुआ करते रहे 

या रब 

बस बाहोत होगया सिकवा ख़ुद से या खुदा 

अब ना मांगेंगे ज़िंदगी 

ये गुनाह हम से एक बार हुआ यह क्या कम रहा 

अब तो बस जिंदगी तेरे इतना ही शुक्रिया 

(c) Manu manju Shukla

Saturday, July 28, 2012

tum or mae


Wednesday, July 4, 2012

मै इनकी जाति नहीं जानती न ही धर्म शायद बंजारा या सड़क पर रहने वाली वो जो लकडियो की चीजे बनाती और बेचती है उसी हिस्से से ये है .. जब यह ट्रेन में चडी तो एक आदमी इन्हें छोड़ने आया था इन्होने उसे १०० रुपये का नोट थमाते हुए कहा सभाल कर रहना और अपना ध्यान रखना और किसी बात कि चिंता मत करना इतना कहकर बड़े प्यार से उस आदमी ko विदा किया बाद में जब मैने पूछा यह कौन थे तो उन्हों ने बताया कि ये उनके बच्चो के पिता है ... और मुस्कुरा दी 

उसके बाद इस महिला ने अपने झोले से रोटी निकाली, शायद यह रोटी सुबह की या सायद एक दिन पहले की बनी थी जो हम और आप खाने से भी कतराते .. बच्चो को खिलाने लगी जब बच्चे रोटी खाने लगे तो पास में बैठ कर महिला अपनी पोटली निकालती है जिसमे सुपारी, पान ,जर्दा था निकाल कर अलग अलग चीजो को अपने हिसाब से मुह में डालती है और पान चबर -चबर करके चबाने लगती है ...
भीड़ से भरी ट्रेन में अगर गलती से भी कोई उसके लेटे बच्चो को उठा या खिसकने भर की बात कह देता तो यह महिला उसपर शेरनी की तरह भड़क जाती मानो उसे खा जाने के लिया टूट पड़ेगी.! महिला चार स्टेशन बाद उतर गई 
पर सच मानो में महिला की एक बात अच्छी लगी 
क्या ?..
आप सोच रहे होगे 
अपने पति ,परिवार और बच्च के प्रति इसका लगाव 
अपने में मस्त रहने वाला इसका सुभाव 
आभाव और गरीबी को अपने अन्दर हावी न होने देना 
सच पूछो तो यह महिला मुझे बहादुर लगी 
क्यों कि " कम से कम इस महिला में महिला होने की हीन भावना नहीं थी " जो मैने अच्छे अच्छे पड़ी लिखी काम काजी महिलओ देखा है 
" यह महिला महिला होने की हीन भावना से ग्रसित नहीं थी "

उसके बाद इस महिला ने अपने झोले से रोटी निकाली, शायद यह रोटी सुबह की या सायद एक दिन पहले की बनी थी जो हम और आप खाने से भी कतराते .. बच्चो को खिलाने लगी जब बच्चे रोटी खाने लगे तो पास में बैठ कर महिला अपनी पोटली निकालती है जिसमे सुपारी, पान ,जर्दा था निकाल कर अलग अलग चीजो को अपने हिसाब से मुह में डालती है और पान चबर -चबर करके चबाने लगती है ...

भीड़ से भरी ट्रेन में अगर गलती से भी कोई उसके लेटे बच्चो को उठा या खिसकने भर की बात कह देता तो यह महिला उसपर शेरनी की तरह भड़क जाती मानो उसे खा जाने के लिया टूट पड़ेगी.! महिला चार स्टेशन बाद उतर गई 
पर सच मानो में महिला की एक बात अच्छी लगी 

क्या ?..
आप सोच रहे होगे 

अपने पति ,परिवार और बच्च के प्रति इसका लगाव अपने में मस्त रहने वाला इसका सुभाव आभाव और गरीबी को अपने अन्दर हावी न होने देना सच पूछो तो यह महिला मुझे बहादुर लगी क्यों कि " कम से कम इस महिला में महिला होने की हीन भावना नहीं थी " जो मैने अच्छे अच्छे पड़ी लिखी काम काजी महिलओ देखा है " यह महिला महिला होने की हीन भावना से ग्रसित नहीं थी "

 —

Wednesday, June 13, 2012

सीतापुर जिले के खदनिया गाव थाना तालगांव की नवविवाहिता प्रीति का क़त्ल उसके ससुराल वालो ने ६-जून -२०१२ की रात कर दिया

http://www.facebook.com/note.php?saved&&note_id=10150936078438796

सीतापुर जिले के खदनिया गाव थाना तालगांव की नवविवाहिता प्रीति  का क़त्ल उसके ससुराल  वालो ने ६-जून -२०१२ की रात  कर दिया  


प्रीति  का विवाह सीतापुर जिले के खदनिया गाँव  के  संदीप कुमार दीक्षित पुत्र अवधेस कुमार दीक्षित से लगभग एक साल पहले हुआ था ! शादी  के बाद ही लड़के के परिवार वाले प्रीति  को दहेज़  के लिया प्रताड़ित कर ने  लगे  थे!  नातो प्रीति को  पेट भर खाना दिया जाता और ना उसे आराम करने का समय बात बात पर उसे गालीया खानी पढती    थी , वो लचर बेबस लड़की खामोश होकर सब बरदास कर रही थी क्यों क़ि वो जानती थी क़ि   पिता क़ि  मौत  के बाद पाच बहनों जी जिम्मेदारी  उसके भाई अलोक तिवारी पर थी  किसी तरह उसके प्रीति  का विवाह  संदीप  से किए था !
शादी  के बाद उसे माइके जादा नहीं भेजा  जाता और जब प्रीति अपने माइके जाती को बस गुमसुम सी दिखती ना उसके चहरे पर खुश और ना ससुराल  जाने क़ि कोई ललक !  उसका पति उसे लेने आता तो उसके चहरे पर डर दिखता ! माँ कारण पूछती तो वो केवल एक जवाब देती बताने से क्या फयदा जीवन तो वही काटना है इतना कह  कर चली जाती !
प्रीति के चाचा बताते है क़ि हादसे से पहले प्रीति ने उन्हें और अपने किस रिश्ते डर कर फ़ोन किया था, फ़ोन पर वो  कुछ घबराई सी  थी उसने कहा क़ि वो छत है और आगे कुछ कह पति  उन्होंने  आवाज सुनी मानों पीछे से किसी ने प्रीति पर जोर का वर किया वो उस आवाज को जबतक समझते प्रीति  फोन कट गया,  दुबारा फ़ोन  मिलाने पर स्विच ऑफ बताने लगा ! चाचा जी ने सोचा इस विषये पर सुबह अलोक (प्रीति के भाई) से बात करेगे!
इधर  प्रीति पर तो  मानों गाज ही गिर गई  उसके पति व  ससुराल वालो ने उसे बुरी तरह पीटना सुरु कर दिया, बेचारी अकेली महिला अपनी जान बचने के लिया गुहार लगती रही किसी नी भी  उस मासूम  की नहीं सुनी और वो  जल्लाद  उस प्रीति को मरते रहे तबतक जब तक  वो मर नहीं गई ! 
रात में जब उन्हों ने देखा क़ि प्रीति मर गई तो गाव क़ि ठेलिया पर लेटा कर कही फेकने जा रहे थे क़ि ताकी वो कह  सही क़ि प्रीति रात में सारा सामान के कर भाग गई ! 
पर अपनी मनसा में वो कामियाब नहीं होसके ! जैसे  ही वो  आगे बड़े गाव की कुछ महिलओ ने देख लिया और उसका हल जानने के लिया आगये तब  देखा क़ि मुर्चित अवस्था में प्रीति पड़ी थी  जिसे चादर से ढका दिया गया था ! तभी एक महिला ने आगे बाद कर प्रीति  ला हाथ पकड़ा तो वो सन रहगी और बोली क़ि यह तो मर चुकी है 
तब लाश को सब उठा कर घर में लेगये  और मिटटी  का तेला डाल कर जलने  का प्रयाश किया जिस्सी प्रीति के  कपडे जल गये और शरीर झुलश  गया था! प्रीति के पति का प्रयाश तह की उसकी लाश का अंतिम संस्कार कर दिया जाए परं उसी बीच किसी ने प्रीति के भाई को उसके मरने क़ि खबर देदी  ! वो लोग अनन-फानन अपने परिवार और गाव के लोगो केसाथ समय पर पहुच गया !
प्रीति क़ि हालत देख कर वो सन रहगया प्रीति क़ि जबान मुंह  से  बहार लटक रही ती मानों उसका गला दबा दिया गया हो उसके हाथ लटक तहे थे  क्योंक़ि उसके हाथ और पैर की हड़िया टूट गई थी  उसके तन पर एक भी कपडे नहीं थी तब प्रीति  भाभी ने उसका शारीर  चादर से धका ......उफ़ क्या दर्दना मंजर था भाई खुद को शभाल नहीं पा रहा था , उसके सामने उसकी छोटी बहन की इतनी दर्दना मौत होगी .. जिस के  हवाले  उसने अपनी बहन को  किया था  आज  वो पूरा का पूरा परिवार  उसकी मासूम बहन का ही हत्यारा हो गएगा  ! 
अपनी बहन को लाश को देखा बार बार आलोक यही कह रहा था अगर उसे नहीं रखना था तो मेरा पास छोड़  देते मै उसे जीवन भर अपने पास रख लेता ,पर मेरी बेगुनाह बहन को  क्यों मारा .. माँ के मुख से आवाज ही नहीं निकल रही थे आसू रुकने का नाम नहीं लेराहे थे ... 
आज एक बेगुना लड़की दहेज़ रूपी दानव मानव  की  दरंदी का का शिकार को चुकी थी ..जिसे  कोई  भी बचने के लिया आगे नहीं बड़ा था ..


सारी खबर जब  पुलिस  को दी गई तो लाश को पोस्मार्टम के लिये भेज  दिया गया! और पोस्मार्टम के बाद प्रीति का अंतिम संस्कार कर दिया गया  और लड़के के परिवार से केवल  प्रीति के पति संदीप और ससुर अवधेश  को तब गिरफ्तार  किया गया जब गाव वालो ने पुलिस  पर दबाव बनाया ..
लड़के के गाव से पता चला है  वर पक्ष ने पुलिस को ८० हजार रूपये दिया है ताकी हत्या तो आत्महत्या बना दिया जाये ...अभी भी  २ अपराधियों  को महिला पुलिस  के आभाव की दुहाई देका पुलिस  गिरफ्तार नहीं किया है ! 
 


Sunday, April 22, 2012

तुम सुन रहे हो न तुम भी वही हो मेरे लिए




एक छोटी चिड़िया गोल सी गेंद में रहा कर सोचती थी कि दुनिया इतनी छोटी है और बस छोटी है और बस उसमे रहकर बंद हो गोल गोल गोल घुमती रहती और सोचती है .............................(हा हा हा हो हो हो हो .......... देखो मैने दुनिया देख लिया................... देखो मैने दुनिया देख लिया )!

एक दिन बड़ी चिड़िया ने अड़े को फोड़ा तो छोटी चिड़िया ने देखा ऊपर दूर तक खुला असमान और वो तो घोसले में थी
छोटी चिड़िया ने पूछा: तुम कौन हो ?...........

बड़ी चिड़िया ने उसके मुहँ में दाना डालते कहा :- मै तुम्हारी माँ हूँ पगली !

छोटी चिड़िया :- माँ माँ तुम मेरी  माँ हो , और यह सा क्या है जो मे देखा रही हूँ ? यह क्या है  ?

बड़ी चिड़िया ने कहा :- यह दुनिया है
छोटी चिड़िया : ओहो माँ क्या दुनिया इतनी बड़ी है , ऊपर नीला नीला असमा और नीचे मेरा छोटा सा घोसला

माँ : बेटा अभी तुम्हारे लिया दुनिया इतनी hi  बड़ी  है और देखो मस्ती मत करना!

छोटी चिड़िया : नहीं माँ मै तो छोटी हूँ  मस्ती कैसे कर सकती हूँ
छोटी चिड़िया : हा हा हा हो हो हो हो ...........देखो मै ने दुनिया देख लिया................... देखो मैने  दुनिया देख लिया

( फिर कुछ दिन बाद छोटी चिड़िया के छोटे छोटे पंख निकल पड़े वो अपने पख हिला कर उड़ने लगी देखो देखो मै उड़ सकती हु देखो माँ मै उड़ सकती हूँ देखो न माँ ..........


माँ : देखो जादा उड़ना नहीं क्यों की तुम्हारे पंख छोटे है और तुम जादा नहीं उड़ सकते

छोटी चिड़िया : नहीं माँ मै तो छोटी हूँ मस्ती कैसे कर सकती हूँ और मै तो बस इस पेड़  पर ही फुद् कू गी 

छोटी चिड़िया :.( पेड़ की डाली पर कूदती हुई छोटी चिड़िया कहती है ) हा हा हा हो हो हो हो .......... देखो मैने दुनिया देख लिया................... देखो मैने दुनिया देख लिया
 

एक दिन अचानक वो खुले आकाश में उड़ने लगती है, उसके पुरे पंख खुल जाते है और तब वो खुले आकाश की ऊचाई को नापने लगती है ! और सोचती है कि मै कितनी गलत थी दुनिया तो बहुत............ बड़ी है दूर दूर तक असमा और नीचे समुन्दर मैदान और गहरी खाई 



छोड़ी चिड़िया बहुत  खुश होती है ! माँ तो बेकार  डरती थी मै अब बड़ी  हो गई हूँ मै ने  दुनिया देखा ली है 
तब वो इन सोचे उड़ना सुरु करती है और देखती है की नजाने क्यों चारो तरफ अजीब सा कोलहल  हर चहरा परेशान डरा सा छोटी चिडया को कुछ समझ नहीं आया अपनी मस्ती में मस्त असमान की उचाई को नापती दूर उडती जाती और  उडती जाती है ताहि एक आधी आती है और वो अपना रास्ता   रास्ता भूल जाती है ..........  रात होने को थी  छोटी  मासूम चिड़िया  थककर वही बैठ  जाती है  सोचा भोरहोते फिर वापस  चलेगे शयद रास्ता खोज  सके .....सुबह  हुई तो  छोटी चिड़िया ने पंख खोले फिर घर  के रास्ते को खोजने  के  लिया उड़ना सुरु करती है तभी achnak  एक बाज की नजर छोटी चिड़िया पर पड़ती है और वो दुस्त  उसे भोजन बनाने दोड़ने लगा !

चिड़िया को कुछ न सूझे वो कहा जाए क्या कर दूर दूर तक कुछ नहीं देखा रहा था माँ माँ को पुकारती  अपने प्राणों को बचाने के लिया उडती जा रही थी उफ़ उसके पंख थक चुके थे   और बाज उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था  अब  प्राण  गए  तब  गए 

ओह चिड़िया  थक कर जमीं  पर गिर पड़ी और मुर्छित होगी  गिर पड़ी पता नहीं चला की क्या हुआ जब उसने अखो को  खोले तो देखा वो एक अजनबी  के हाथ में थे जिसे न उसने कभी  देखा था न जाना था पर सयद उस छोटी चिड़िया को  बाज  से बचने  वाला था 

तुम्हें पता है एक लड़की भी  छोटी चिड़िया क़ि तरह होती है जो आकाश को छुना चाहती  है वो खुल कर जीना चाहती  है  अपने सपनो पाना चाहती है लेकिन वो जब खुले आकास  को नापने के  लिया उडती है तो कोई ना कोई बाज उसे दबोचने  के  लिये उसकी तरफ बढ़ता  है कोई जान बचा कर भाग लेती है  तो कोई बाज के पंजो  में दम तोड्देती है ..तब उसके सारे के सारे  सपने बिखर  जाते है  .............सच तो यह है क़ि आब  कोई चिड़िया ऊचा उड़ना  नहीं सोचती है 


क्यों क़ि हर किसी क़ि किस्मत एक जैसी  नहीं होती और ना हर किसी को कोई बचने आ  पाता है 


पर मेरे लिये तुम वो दो हाथ हो जिसके बीच मै खुद को जीवित महसूस कररही हूँ 

तुम सुन रहे हो  न  तुम भी वही हो मेरे लिए