Saturday, March 12, 2011

अब तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर तुम्हारे पास है


तुम कहते हो
क्या मै तुमसे प्यार करती हूँ
मेरा उत्तर आज भी ना
और घुपत ख़ामोशी
जिसे मै आज भी नहीं तोड़ पाई

पता है क्यों ......
मै अनन्त शब्द माया जल
से निकल अब उन झुरमुटो से निकल
सोम्य पुष्पों कि कतारो में
खीलते पुष्पों
के बीच तुम्हे खड़ा देखती रही हूँ

यहाँ सच है
वो हर मोड़
जहाँ से तुम्हारा काफिला गुजरता है
मेरी आंखे तुम्हे देख आनंद में लिप्त हो
बस तुम्हे आगे बढता देखना चहती है

वो हर बाते
तुम्हारी
मुझे पेरणा दे
जीवन के अनन्त अंधेरो से निकाल
तुम
सूरज कि पहली किरणों को दिखा
मेरे म्रत जीवन में ओज कि किरने भर
सूर्ये लोक लेजाते हो

जब तुम्हारी विशाल बाहे
मुझे बुलाती है
तो मै बच्ची बन
उनमे समा
दुनिया के दिया हर दर्द को भूल
तुम्हारे पारी बन
जग भूल जाती हूँ

तुम्हारा होना मेरे अंधजीवन को सार्थक बनता है
और मै पतझड़ से निकल
सावन का पपिहा बन
तुम्हारे अनुराग में खो जाती हूँ

क्यों कि
तुमने ही तो मुझे सजाया सवारा है
तुमने ही तो मुझे जीना सिखया है
तुमने ही तो मेरी रोती आँखों को हस्य है
जब भी मै अपने अतीत के पन्नो में फासी
तुमने ही तो आज का सूरज दिखया है

हा पर फिर भी
मै तुमसे कहती हूँ
मै तुमसे प्यार नहीं करती
क्यों कि मै प्यार का व्यपार नहीं करती

पर यहाँ भी सच है
तुम्हारे बिना जीवन कि राह नहीं देख सकती
मै अअब प्यार शब्द को शब्द हिन् समझती हूँ
जो झूठ और फरेब से भरा विष म्र्गत्र्सना है
जो बस अब कामुक पुरुष और स्त्री कि पिपासा मे लिप्त
भ्रमजाल है



अब तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर तुम्हारे पास है
और उत्तर पुस्तिका भी
जो उत्तर ठीक लगे
वो उत्तर खुद भरलो


1 comment:

Sumit Pratap Singh said...

बहुत खूब...