Friday, April 1, 2011
दरवाजे पर खटखट हो रही है कही पुलिस तो नहीं ?
पुलिस शब्द कान में पड़ते ही एक अजीब सी बेचैनी होने लगती है और तब तो हवा ही खराब हो जाती है जब पता चले कि पुलिश हमें ही खोज रही है ! मन में डर और आशंका के बीज उग आते है बिना किसी गुनाह में भागीदार रहे हुए भी अपने आप को पुलिस के चंगुल से बचाने की जुगत किसी राजनेता या वकील तक खीच ले जाती है ! बड़ी अजब बात है तस्बीर का एक पहलु यह भी है की अगर आज पुलिस थाने हटा लिए जाये तो समाज में अराजकता फैल जाएगी , लोगो का जीना और रहना , चलना दूभर हो जाएगा तब क्यों पुलिस " हौउआ " बनी है ?
यह अपने आप में एक अजीब सवाल हें! बात समझ में यह आती है कि अभी भी हमारे देश में बिर्टिश पुलिस कानून चल रहां है! पुलिस कहने को तो सेवक है पर मानसिकता शासक के लाठ्येत की है और दूसरी बात यह है की पुलिस धन से संपन लोगो की स्वतः गुलाम की भूमिका में खडी हो जाती है! ये बाते लखनऊ की एक घटना ने मेरे ज़हन में बैठा दिया है !
बात लखनऊ के रिहायसी इलाके गोमतीनगर की है यह इलाका बहुत तेजी से विकसित हो रहा है इसी छेत्र में निर्माण कार्य भी बहुत तेजी से हो रहे है एक दिन अचानक मेरे मित्र ने बताया की आज बहुत गलत हो गया तीन मजदूरो पर गोमतीनगर पुलिस ने अवैध धन वसूली का मुकदमा दर्ज कर राम सुन्दर नाम के मजदूर को जेल भेज दिया ! मुझे यह मामूली बात लगी कि मजदूरे ने झगड़ा किया होगा,या जादा पैसा मांग रहे होगे तो ऐसा हुआ होगा, वैसे भी समाज में मेरी ही तरह बहुसंख्यक लोग सोचते है कि इस तरह के झगड़े में गलती हमेशा कमजोरो,मजदूरो कि ही होती है लेकिन मै यह जान कर अवाक् रहा गई कि जिन मजदूरो पर अवैध धन वसूली का मुकदमा लिखा गया उन्होंने आरोप लगाया था कि एक आर्केटेक्ट जितन्द्र भाटिया ने अपने तमाम साइडो पर इन लोगों से काम कराया और बिजली, टाईल्स, पेंटिंग आदि काम कि मजदूरी जब लाखो रूपए हो गयी तो पैसा देने से इंकार कर दिया और पुलिस में अपनी अच्छी पहुँच कि धमकी देते हुए जेल भिजवाने की बात कही! इस बात की सुचना मजदूर छोटेलाल मिश्रा रामसुन्दर व जवाद ने जिला अधिकारी लखनऊ को ३ दिसम्बर-२०१० को दिया और साथ ही निर्माण मजदूर यूनियन में भी शिकयत किया इसी बीच जितन्द्र भाटिया ने मजदूरों को फ़साने की नियत से थाने पर एक आवेदन दिया की उक्त मजदूर हमारे यहा काम पर नहीं आ रहे है और मारने की धमकी देते है! गोमतीनगर पुलिस ने भाटिया के कहने पर मजदूरो से पूंछताछ सुरु की! जब राम सुन्दर के घर पुलिस गई तो राम सुन्दर ने पूरी बात गोमतीनगर पुलिस को बताई और कहा की "हमारा पैसा न देने की नियत से भटिया ऐसा कर रहे है जिसपर पुलिस ने कहा की नरम गरम समझौता कर लो नहीं तो परेशान हो जाओ गे उसकी पहुँच बहुत ऊपर तक है वो बहुत बड़ा आदमी है "
इसी बीच दो तीन दिन बाद छोटे लाल मिश्रा को जितेन्द भाटिया ने अपने घर बुलया और १०००० रुपया टेबल पर रखा और कहा इस कागज पर दस्तखत कर दो और लिख दो मुझे 10000 रुपया मिल गया जब छोटे लाल ने दस्तखत कर दिया तो जितन्द्र भाटिया ने पैसा उठा कर रख लिया और कहा की तुमने मेरे भाई के खिलाफ निर्माण मजदूर यूनियन में शिकायत किया है उसे वापश लो तब पैसा ले जाना (जितंद भाटिया का भाई कपिल भाटिया व उसकी पत्नी भी आर्केटेक्ट है और सभी एक साथ काम करते है ) छोटे लाल मिश्र के साथ जो धोखा धडी हुई की पैसा दिखा कर दस्तख़त करा लिया और पैसा भी नहीं दिया इस घटना की लिखित शिकायत गोमतीनगर थाने मे उन्होंने दिनाक १७/१२/२०१० को की लेकिन गोमतीनगर पुलिस ने तहरीर लेने से मना कर दिया तब १८/१२/२०१० को उन्होंने अपर पुलिस अधीक्षक गोमतीनगर को उचित करवाई करने के लिए आवेदन दिया एवं पुलिस महानिदेशक लखनऊ एवं गृहसचिव को उचित कारवाही के लिया रजिस्ट्री की लेकिन पुलिस ने जितन्द्र भाटिया के खिलाफ कोई करवाई नहीं की और हद तो तब होगया जब दिनाक ३१/१२/२०१० को जितन्द्र भाटिया के आवेदन पर गोमतीनगर पुलिस ने निर्दोष रामसुन्दर , छोटेलाल मिश्रा व मोहम्मद जावेद पर मुकदमा संख्या १०६१/१० धरा ३८४ के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और और रामसुन्दर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया ! बाकि दोनों नामजद लोग खुद को पुलिस से बचाते भागने लगे!
कितनी अजीब बात है कि मजदूर अपना बकया पैसा भुगतान के लिया ३ ,१७,१८ दिसंबर २०१० को जिले के आला अधिकारियो से शिकायत करता है पर उसकी बात कानून के ठन्डे बक्से में दफन कर दी जाती है और जब मजदूरो का पैसा चोरी करने वाला जितेन्द्र भाटिया ३१/१२/२०१० को मजदूरो के खिलाफ आवेदन देता है तो गोमतीनगर पुलिस हरकत में आकार मजदूरों के खिलाफ अवैध धन वसूली का मुकदमा जड देती है! जब कि निर्माण मजदूर यूनियन १५ जनवरी के दिन जब पूरा उत्तर प्रदेश मायावती जी का जन्म दिन मना रहा था तब मजदूरो पर से फर्जी मुकदमा वापस लेने और बकाया मजदूरी दिलाने के लिए शहीद स्मारक पर धरना देती है और गोमती नगर पुलिस के मजदूर विरोधी करवाई के खिलाफ पुरे शहर में अभियान चला , पुलिस के खिलाफ पर्चे बाट कर नुक्कड़ सभा की और दोबारा पुलिस की गलत करवाई के खिलाफ ५ फरवरी को धरना स्थल पर बड़ा प्रदर्शन किया ! उसके बाद भी लखनऊ की पुलिस और जिला प्रशासन ने घटना की सत्ता जानने की जहमत नहीं उठाइ ! और मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूरो को मुजरिम बना दिया , क्यों की वो गरीब है और पुलिस केवल पैसे वालो की ही सुनती है
निर्माण मजदूर यूनियन के अध्यक्ष समयदास मानिकपूरी ने बताया की पुलिस पैसे वालो की रखैल बन गई है जिसके पास पैसा है जो उच्च अधिकारियो से राफ्ता रखते है पूरा प्रशासन और तंत्र उनकी गुलामी करता है जब लखनऊ में पुलिस की यह हाल है तो अंदाजा लगाया जा सकता है की दूर दराज के जिलो मिर्जापूरा, गाजीपुर और पीलीभीत में क्या हो रहा होगा !क्या गरीबो और मजदूरो के लिया न्याय नहीं है?
लाख टके का प्रश्न यह है की जब इस घटना के सन्दर्भ में खबरे छपी,धरने प्रदर्शन हुए एवं उच्च अधिकारियो के यहा शिकायते दर्ज हुई उसके बाद भी मजदूरो को केवल आज तक इस लिया न्याय नहीं मिला क्यों की जिसके खिलाफ वो लड़ रहे है वो बहुत पैसे और उचे रसूल वाला है और पुलिस को उसके कहने पर ही चलना है !
जय हो लखनऊ की पुलिस ; धन्य है भारत की कानून व्वस्था !
दरवाजे पर खटखट हो रही है कही पुलिस तो नहीं ?
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3 comments:
बहुत ही बढिया... काश कुछ पुलिस वाले भी ब्लाग पढ़ते.. शायद कुछ सोचने को मजबूर हों।
Bahut hi sundar!! bilkul sach kahaa aapne
nice
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