अपनी आँखें बंद करो, परमेश्वर की आवाज सुनते हैं, वह हम सब से कुछ कह रही है, "मुझे बचाओ." धरा को बचाओ... अपने भविष को बचाओ"
हाल ही में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 से 2005 के अंतराल में करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण हत्याएं हुई हैं। इस लिहाज से देखें तो इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही दफ्न कर दिया गया।
सीएसओ की रिपोर्ट के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं सीएसओ की रिपोर्ट केंद्र सरकार के सभी दावों को सिरे से खारिज करती है। गैरकानूनी और छुपे तौर पर कुछ इलाकों में तो जिस तादाद मेंcहो रही उधर सरकारी तर्क में कहा गया है कि 0.6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण के गर्भपात के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ, बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है। बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर बडोतरी हुई है ! 1981 में 0.6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 था, जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका करण देश के कुछ भागों में हो रही कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है। 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है।
इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक हो रहा है । सरकार ने 2011 व 12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ा कर 950 करने का लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है। जाहिर है, हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्चियों की इस दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है और सिलसिलायह सिल्सिल्ला निरंतर बड रहा है!
समाज में बालिको का तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है।हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
यूनिसेफ के अनुसार 10 प्रतिशत महिलाएं विश्व की जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं, शयद स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है।
यदि देश के कुछ राज्य पर द्रस्ती डाले तो देखेगे तो बड़े आश्चर्ये होगा बिहार राज्ये में ही वर्ष २०११ में ६४० जिलों में १०२ जिलों में लडकियों की संख्या लडको के मुकाबले अधिक है इस लिहाज से बिहार जैसे अशिक्षित राज्य में लडकियों की संख्या अन्य राज्यों की अपेक्षा अच्छी है!जबकि दुसरे राज्ये में जैसे पॉण्डिचेरी में ५००० लडको पर ११७६.२४ बालिकाए है उत्तराखण्ड में ११४१.५२ महाराष्ट्र के रत्नागिरी मैं ११२२, केरला में ११३३.१२ ऐसे ही यदि अकड़े देखे गे तो हर जिले में १००० लडको पर ५३३% लडकिया ही है !
सच तो यह है
- हर 6 लड़कियों में १ लड़की अपना 15 जन्मदिन देख नहीं पाती .
- 12 मिलियन भारत में पैदा लड़कियों में , 1 लाख लडकियां अपना पहला जन्मदिन देख नहीं पाती .
- 12 मिलियन भारत में पैदा लड़कियों में , 3 लाख लडकियां अपना पन्द्रहवें जन्मदिन देख नहीं पाती .
- और उनमें से एक लाख लडकियां अपने पहले जन्मदिन तक जीवित रहने में असमर्थ.
- एक-तिहाई लडकियां इनमें से जन्म लेते समय मर जाती हैं
- हर छठी लड़की बच्चे की मौत लैंगिक भेदभाव के कारण होता है.
- महिलाएं पुरुषों से अब तक बचपन के दौरान से ज्यादा प्रताड़ित हो रहीं हैं.
- 3 लाख से अधिक लड़किया लड़कों से जादा हर साल मर जाती हैं
- 4 वर्ष की आयु से नीचे की लड़कियों के बीच मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है. यहां तक कि अगर वह शिशु हत्या या भ्रूण हत्या से एक लड़की बच्चा बच जाती है तो भी एक नर बच्चे की तुलना में टीकाकरण, पोषण या चिकित्सा उपचार प्राप्त होने की संभावना शून्य होती है!
एक तरफ तो हमारे ग्रंथो में " यत्र नारी पूज्यंते, रमंते तत्र देवता "
पर क्या इस्देसा में देवता वास करेगे जहाँ बच्चियों को गर्भ में मर दिया जाता है जहा बचियो को जीवन जीने से बंचित किया जाता है !
सच तो यह है लाख देवी की पूजा करो यदि अपने घर के बच्ची से खुलकर जीने से वंचित किया तो क्या देवी कि आराधना पूरी होगी !
9 comments:
बहुत ही उपयोगी जानकारी के साथ सार्थक लेख।
ji sukriya mahendra srivastava
Syed Zubair@
Ahmad Mirror image of society
पसंद आया आप का यह लेख़ और इस को चर्चा मंच मैं शनिवार की चर्चा मैं पेश किया जाएगा.
Alpana Tiwari
अरे मंजू बेटी नहीं तो कुछ भी नहीं है समाज में . अन्न दान करो या वत्स्त्र दान करो या गौ दान करू जब तक कन्यादान नहीं किया जीवन का उद्धार नहीं हो सकता है
सशक्त और यथार्थपरक लेख
बेहद सटीक एवं सार्थक लेखन ।
सार्थक आलेख। शुभकामनायें।
ब्लाग तो अच्छा है ।.... इस ऊँ की क्या जरूरत ?
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