लोग पूछते है मुझसे मेरा परिचय
क्या उनको जवाब दू
मेरी बेबसी और लाचारगी को वो क्यों नहीं समझते है
मुझे संकोच हो रहा परिचय देने में
सच है की मेरा साया
भी मुझसे खेल रहा है
और लोग मुझसे
मेरा नाम भी अब तो प्रश्न चिन्ह बन के रह गया है
अब तो सब ख्वाब है
ज़िन्दगी भी एक सपना
क्या उनको जवाब दू क्या है परिचय मेरा
दर्पण के सामने खड़े हो
मैंने अपनी बोलती आँखों को देखकर कहा
ज़िन्दगी सपने ही तो है
क्या तक़दीर उसने मेरी लिखी
की कोरे कागज पे भी अब
मेरी रोती हुई तस्वीर ही निखर के आई
ना कुछ मुझे लिखना आया
और ना किसी को मुझ में पड़ना
बस बेफिक्र बेपरवाह
जिंदगी जिए जा
रही हु
अपने ही कंधो पर
अपनी नाकामी की लाश को डोये जा रही हूँ
1 comment:
क्या कहने
बहुत सुंदर
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