Thursday, September 1, 2011

लोग पूछते है मुझसे मेरा परिचय







लोग पूछते है मुझसे मेरा परिचय


मै खुद से अनजान खुद को ही ना पहचान पाई

क्या उनको जवाब दू

मेरी बेबसी और लाचारगी को वो क्यों नहीं समझते है

मुझे संकोच हो रहा परिचय देने में

सच है की मेरा साया

भी मुझसे खेल रहा है

और लोग मुझसे

मेरा नाम भी अब तो प्रश्न चिन्ह बन के रह गया है

अब तो सब ख्वाब है

ज़िन्दगी भी एक सपना

क्या उनको जवाब दू क्या है परिचय मेरा

दर्पण के सामने खड़े हो

मैंने अपनी बोलती आँखों को देखकर कहा

ज़िन्दगी सपने ही तो है

क्या तक़दीर उसने मेरी लिखी

की कोरे कागज पे भी अब

मेरी रोती हुई तस्वीर ही निखर के आई

ना कुछ मुझे लिखना आया

और ना किसी को मुझ में पड़ना

बस बेफिक्र बेपरवाह

जिंदगी जिए जा

रही हु

अपने ही कंधो पर

अपनी नाकामी की लाश को डोये जा रही हूँ

1 comment:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

क्या कहने
बहुत सुंदर