Sunday, June 6, 2010

सूरज की दत्तक पुत्री





नारी हूँ


न हारी हूँ


जीवन सचेतना पर
आज लिखना है


नवल इतिहास


न है कोई अभिपेरणा


न झूठा भ्रम साथ


आज बढ़ना है मुझे सच की कसोटी पर


आज करना है मुझे स्वयं से साक्षात्कार


आज बताना है जीवन को मैं नहीं कमजोर


मैं संचित समाज की वसुंधरा ............


सच की आज धुप है ओढ़ी maine


अग्नि की व्यापकता है मुझमे ...........


सजा करा स्नेह अनुराग का


आज निकली हूँ रचने नव इतिहास


सूरज पिता मेरा


वशुन्धरा मेरी माँ


मैं अग्नि


सूरज की दत्तक पुत्री


2 comments:

खोरेन्द्र said...

सूरज पिता मेरा

वशुन्धरा मेरी माँ

में अग्नि

सूरज की दत्तक पुत्री

saty ......
very very nice ...

अरुणेश मिश्र said...

उत्तम भाव । व्याकरण शुद्ध करें ।
कथ्य प्रशंसनीय ।