Monday, June 7, 2010

निशब्द सी खड़ी

ओ वसुंधरा तुम क्यों नहीं बोलती

मौन खड़ी

शब्द क्यों नहो खोलती

आज तेरे द्वार

तेरी जानकी पुकारती

खोल दो ह्रदय

समालो माँ मुझे

अब शब्द बाण

नहीं जा रहा सहा

क्यों मौन हो माँ ??

समां लो मुझा ...

आज झूठ उपहास

करा रहा द्वारा

सत्य रो रहा आज

माँ तुझे पुकार कर

आज

tu rahi नीरव

टूटेगा मेरा विश्वाश

क्या तुझे दया नहीं

नेत्र क्यों नहीं खोलती

आज तेरी जनकी का खोरहा अस्तित्व

एक नारी ही करा रही एक नारी को शापित

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