Wednesday, March 14, 2012

sachi kahani


लेखिका मनु मंजू शुक्‍ला अवध रिगल टाइम्‍स की संपादक और समाज सेविका हैं.












शाम का वक़्त था मान्या अपने रूम में अकेली बैठी किताबो के पन्ने पलट रही थी मानों पढने का ढोंग कर रही थी तभी टेलेफोन की घंटी उसके ध्यान को भंग कर देती है और वो फ़िर से चेतना में आ जाती हैहडबड़ा  कर  फ़ोन उठा कर कहती  है हेलो!  
फ़ोन से उधर  से आवाज आती है, मै आंचल बोल रही हूँ  
मान्या कहती है "हाँ  आंचल!  बताओ  कैसी हो  क्या  चल   रहा है " 
और तभी  आंचल फूट  फूट कर रोने लगती  है और कहती है क़ि "मै ठीक नही हूँ " और इतना कहकर फूट - फूट कर रोने लगती है मान्या को  समझ  में  नही आता उससे क्या कहे उसका  हौसला बढाती  है और पूछने का प्रयास करती है और पूछती है क्या हुआ तुम क्यों रो रही हो
आंचल मान्या से कहती है क़ि मै बहुत परेशान  हूँमै थक गयी हूँ अकेलेपन से बोलती बोलते उसकी आवाज बहुत गंभीर  हो गयी थी मान्या ने आंचल से पूछा ऐसा क्या हुआ मुझे बताओ अपना समझकर
  आँचल - यार मै तुम्हें क्या बताओ  बहुत कुछ  बताने को है पर कहाँ  से शुरू करू 
मान्या- हमममम 
आगे आंचल कहती है एक साल पहले विशाल मेरी जिंदगी में आता है मैंने  ये बात सबको बताई थी पर  तुम्हें नही बताई थी हम दोनों मेट्रोमोलियन  के द्वारा नेट पर मिले  और  बहुत सारी बाते कीविशाल ने अपने बारे मे अपने परिवार के बारे मे तथा अपने कार्य के बारे में सब कुछ बताया उसके सच और ईमानदारी  ने मेरा दिल जीत लिया था मेरी भी बातें उसे अच्छी  लगती थी हम दोनों घंटों फोन पर बातें किया करते थे मैंने दिन में क्या किया उसने दिन में क्या किया सब कुछ और मुझे लगा विशाल  मुझसे बहुत प्यार करता है ये सोचकर मै भी विशाल से प्यार करने लगी
मान्या-हम्म्म्म
आँचल बातों का सिलसिला आगे बढाती है कहती है विशाल ने मुझसे मिलने का आग्रह किया पर मैं उसके शहर नहीं जा सकती थी क्योंकि उसका शहर बैंगलोर  मेरे लिये अनजाना था हम दोनों ने मुंबई में मिलना तय किया क्योंकि मुंबई में मेरे कज़िन का परिवार रहता था अपने माँ बाप की मर्ज़ी के खिलाफ मै मुंबई के लिये रवाना हुई
मान्या-हुम्म्म्मम्म्म्म
आँचल - मै विशाल से मिलने के लिये आतुर थी मुंबई पहुंचकर विशाल को फोन किया और दोपहर के समय एक रेसटोरेंट   में मिलना तय हुआ मै विशाल से मिली जैसा वो बातो में दिखता था वो उसके  विपरीत था एक आधुनिक ज़माने का इंसान था   मै सीधी सादी सिम्पल लड़की  थी हम मिले बहुत सारी बातें की पूरा दिन एक साथ बिताया दूसरे दिन सुबह फ़िर से मिलना तय हुआ विशाल ने मुझे दीदी के घर छोड़ा दूसरे दिन  सुबह मै विशाल से मिलने के लिये घर से निकल पड़ी पूरे दिन बाद शाम को विशाल  से पूछा - तुमने क्या   तय किया ? विशाल ने उत्तर दिया कि देखो आँचल, मै सच बोलूँगा तुम मेरे साथ कहीं भी फिट नहीं बैठती ना ही मेरे स्टेटस से, ना ही मेरी सोच के हिसाब से 
मान्या- ऐसा उसने क्यों कहा?
आँचल- शायद विशाल को आधी नंगी लडकियां पसंद हैं जो उसके साथ होटल में जाएँ उसकी सारी नीड्स पूरी करें उसके विचारो से मुझे लगा कि  उसे एक पत्नी नहीं एक गर्लफ्रेंड चाहिए थी इतना कहते कहते आँचल का गला भर आया था वो कहती है की जब विशाल ने मुझसे ऐसा कहा तो मै उसी पल वहां से उठी और बाथरूम  में जाकर मै  चीख  चीख  कर  खूब  रोई  और  खुद  को  कोसने  लगी  कि  मैंने   ऐसे  आदमी  पर  विश्वास  क्यों  किया ? क्यों  ऐसे  आदमी  से  प्यार  किया ? रात उसी तरह रोते रोते कट जाती है सुबह मै अपना बैग उठाकर वापस अपने घर चली जाती हूँ कुछ दिन तक विशाल का ना कोई फोन आता है और ना ही मेरे मेसेज  का जवाब आता है एक दिन अचानक विशाल का फोन आता है तो मै पूछती हूँ कि आज अचानक तुमने मुझे फोन कैसे किया ?
विशाल- क्या करूं ?  तुम्हारी बक बक कि आदत जो पड़ चुकी है आँचल बिजी  होने का नाटक करके विशाल के फोन को इग्नोर कर देती है यूं ही बातों का सिलसिला कुछ दिन तक चलता है और कुछ दिन के बाद थम जाता है आँचल बताती है कि दिल के हाथों मजबूर होकर मै कभी कभी विशाल को मेसेज भेज दिया करती थी एक दिन जब मैंने मेसेज भेजा तो विशाल फोन करके कहता है कि मेरी मंगेतर तुमसे बात करना चाहती है 
आँचल बात करने से मना कर देती है लेकिन विशाल के बार बार आग्रह करने पर बात करने के लिये हाँ कर देती है 
आँचल मान्या से बताती है कि फोन पर उधर से एक लड़की की आवाज़ आती है मै विशाल की मंगेतर बोल रही हूँ मैंने सोचा कि शायद विशाल जैसे अधेड़ उम्र के इंसान को छोटी उम्र की लडकियां पसंद हैं इसलिए मैंने उससे पूछा कि किस स्कूल में पढती हो ?  वो हंसी और बोली कि मै जॉब करती हूँ तो मैंने उससे कहा कि मैंने ये प्रश्न इसलिए  पूछा कि शायद विशाल को बच्चियां पसंद हैं मैंने उससे पूछा कि तुम लोग शादी कब कर रहे हो? इस पर उसने कहा कि अभी तो मै इन्हें दो महीने से जानती हूँ पहले इन्हें जान लूं फ़िर शादी करेंगे पर जब मै विशाल के साथ होती हूँ तब तुम्हारे मेसेज बहुत डिस्टर्ब करते हैं तो मैंने उस लड़की से कहा कि विशाल की  बहुत सारी गर्लफ्रेंड्स  हैं वो भी तो मेसेज करती होंगी क्या विशाल ने तुम्हें नहीं बताया? इस पर वो लड़की  हडबड़ा गयी और उधर से विशाल के इन्सट्रकशंस देने की आवाज़ आई शायद वो फोन कट करने की बात कर रहा था लड़की कहती  है कि अच्छा मै फोन रखती हूँ तुमसे बात करके बहुत अच्छा लगा 
आँचल- तब मैंने उस लड़की को जवाब दिया पर मुझे तुमसे बात करके कोई ख़ुशी नहीं हुई इतना कहकर मैंने फोन रख दिया सच पूछो तो मुझे उस दिन बहुत दुःख हुआ  और मै घंटों रोती रही  मेरे एक  मित्र ने मुझे  बहुत ढ़ाढस बंधाया और कहा कि मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ और हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा हमारा रिश्ता एक पवित्र रिश्ता है पर उस मित्र कि पत्नी नहीं चाहती थी कि वो मुझसे बात करे जबकि मैंने ही उन दोनों की शादी कराई थी सच पूछो तो आज मै बिलकुल अकेली हूँ इतना कहकर आँचल फूट फूट कर रोने लगती है
मान्या आँचल से कहती है कि रो मत मै तुम्हारे साथ हूँ हमेशा हमेशामेरे होते हुए तुम अपने आप को अकेला कैसे समझ सकती हो और आँचल को बहुत सारी दिलासा देती है पर मान्या भी शायद इस सच को अच्छे से जानती है कि इस दुनिया में प्यार का कोई मोल नहीं हैआँचल कहती है कि मान्या ! घर पर कोई आ गया है मुझे फोन रखना पड़ेगा मै फ़िर तुमसे बात करुँगी मै जानती हूँ कि तुम मुझे समझती हो आगे से मै तुम्हारी हर बात मानूंगी और तुम्हें सारी बात बताऊंगी मान्या! कभी कभी फोन कर लिया करो मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत हैफोन रखने के बाद मान्या अपने अतीत के पन्नों में खो जाती है उससे भी तो भावेश ने ऐसा ही किया था अनगिनत उससे झूठ बोले थे और जब अंत में आखिरी बार बात हुई तो उसने कहा था कि मान्या! मै तुमसे प्यार नहीं करता था मुझे तुम्हारे शरीर की  ज़रूरत थी जो तुमने पूरी नहीं कि इसलिए मै वहां चला  गया जहां मेरी इच्छा पूरी हो गयी अगर तुम चाहो तो मेरी मित्र  बन सकती हो हम आजीवन अच्छे मित्र बन सकते हैं और उस समय भी भावेश का  देह लालच ही मान्या के पास लाया था ना कि प्रेम उस समय मान्या ने  उससे कहा था कि इंसान दोस्ती  से प्रेम की तरफ बढ़ सकता है पर प्रेम से दोस्ती की तरफ वापस आना असम्भव है और जब मान्या ने उसे अंतिम फोन किया था तो उसने भी वही किया था जो   विशाल ने आँचल के साथ किया था और कहा था कि तुम्हारे फोन मुझे डिस्टर्ब करते हैं वो अंतिम फोन था जिसके बाद मान्या ने भावेश को कभी फोन नहीं किया लेकिन उसके दिमाग में हमेशा ये प्रश्न कौंधता है कि कैसे पुरुष ? कैसा इनका प्रेम मायाजाल ? क्या इन्हें दूसरों कि भावनाओं कि कोई क़द्र नहीं?क्या इन्हें कभी सज़ा मिलेगी? पर उत्तर मिलता है कि शायद नहीं क्योंकि भगवान् भी पुरुष है और वो  पत्थर का है वो भी स्वार्थी है तो वो कैसे इन्हें दंड दे सकता है?

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