मेरी रिगल क्लास में एक बच्चा जिसकी उम्र ११ साल है कई दिन से नहीं आरहा था
उसे देखकर मेने पूछा पढने क्यों नहीं आरहे हो
उने जवाब दिया " maam मै नोकरी करेने जाता हूँ मुझे समय नहीं मिलता इस लिये नहीं आ रहा हूँ
मैनेउससे पूछा " तुम्हे कितना मिलता है "
उसने बतया " २० रूपया " और "१५ रूपया खाने के लिया "
मैने उससे पूछा " जब तुम नहीं जाते हो तब "
उसने बतया "तब नहीं मिलता "
उसके इस बात को सुनकर मे बस अवाक् रहा गई
सच तो है आज उसकी और उसके परिवार कि जरुरत भोजन है ! यदि पेट भरेगा तब ही तो पढाई होगी
उसके परिवार में वो चार भाई १ बहन है पिता बीमार माँ घरो में बर्तन मजतीवो घर का सबसे बड़ा बेटे है इस लिया कम करना उसकी मज़बूरी है
दूसरी तरफ वो लोग जिनके पास मुद्रा है अपने शोक पर तो खर्च करसकते है पर इन बच्चो पर खर्च करने के लिया उनके पास कुछ भी नहीं !
जीवन का कटु सच है हम इन बच्चो को अपना नोकर तो बनालेते है जनवरो कि तरह कम भी लेते है पर कभी भी क्या हमें एक पल के लिया सोचा सबको मानवता पड़ने वाला हमारा जमीरनहीं सोचता है" ये इन्सान है ", इन्हें भी पढने और जीने का हक़ है
सभ्य समाज में बाल श्रमिकों का निरंतर शोषण किया जाना निसंदेह चिंता का विषय है . देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालो के बच्चो को मजबूरीवश पेट की खातिर काम करना पड़ता है . देश में कई कानून बनाए तो गए है पर नौकरशाही या नेताओं द्वारा उन कानूनों को असलीजामा नहीं पहिनाया गया है . १४ वर्ष की कम आयु के बच्चो से काम लेना अपराध माना गया है पर देखने में आया कि बढ़ती महगाई के कारण निरंतर बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है . राजनेता भी बाल श्रमिकों के हाथो से चाय पीते लेते जा सकते है पर मैंने किसी राजनेता को उन्ही बाल श्रमिकों के अधिकारों कि रक्षा करने के लिए आवाज बुलंद करते नहीं देखा है यह सच है
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चौदह वर्ष तक की आयु के सीमांत बाल श्रमिकों की संख्या 1991 में 2203208 थी, जो 2001 में 207.10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 6987386 हो गई। विनिर्माण और मरम्मत ऐसे क्षेत्र हैं जहां 2006 के बालश्रम के प्रतिबंध के बावजूद लाखों बच्चों को रोजगार में लगाया गया है। 2001 की जनगणना के अनुसार होटलों, चाय की दुकानों और थड़ियों, रेस्तरांओं और ढाबों, परचून की दुकानों आदि में 61 हजार से अधिक बच्चे काम कर रहे हैं।
जिन बच्चों पर देश के भविष्य की नींव टिकी हुई है, उनकी नींव खुद ही कमजोर हो तो वे भला राष्ट्र का बोझ क्या उठायेंगे।
आज प्रश् यह उठता है कि क्या कोई कानून बालश्रम को रोक सकता है ?
क्या कोई कानून बच्चो कि और उनके परिवार कि भूख कि आग को ठंडा कर सकता है
ये दौलत भी ले लो
ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वे कागज की कच्च्ती वो बारिश का पानी।
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