दरिया से मिलके सोच बैठे थे, हम समंदर से मिल
कितनी अजीब बात की, कि खुद को भूल बैठे
लड़े वो जंग दुनिया से , जिसका मतलब भी कोई, कोई मतलब न था
हार कर बैठे अपने वजूद को , हाथ खाली था , हाथ खाली ही रहा
हर शकस के चहरे पे चढ़ा एक नकाब था
मेरी मौत का तमाशा देख रहे थे सभी
बढकर कफन डाल देते या जरुरी न समझा
आज मेहफिल भी वाही हम भी वाही
पर सब बदल गया,
मेरा चहरा जो था अब वो ना रहा .....
मेरा चहरा जो था अब वो ना रहा ..............................
4 comments:
वो जंग दुनिया से , जिसका मतलब भी कोई कोई मतलब न था
हार कर बैठे अपने वजूद को , हाथ खाली था , हाथ खाली ही रहा
.
बहुत खूब कहां है आपने
अभिव्यक्ति सुन्दर और सारगर्भित है, बधाईयाँ !
मेरी मौत का तमाशा देख रहे थे सभी
बढकर कफन डाल देते या जरुरी न समझा
achchhi abhivyakti hai
- vijay
सुंदर अभिव्यक्ति
क्या बात है।
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