सोच कर या हमें भी गुमान होता था
रुलाके मुझको बहुत वो भी तो रोया होगा
मेरी तरह रात भरा वो भी न सोये होगे
हकीकत जान का हम बहुत रोये
रुला के हमें वो रातभर गहरी नीद में सोये
हमने रात इंतजार में कट दी
सयद उन्हें भी मेरे दर्द का अंदाजा हो
पर टूट गया वो भी भ्रम
अब तो तकिया भी हमारी भीगी
और अश्क भी हमारे बस सैलाब बने
4 comments:
क्या बात है. बहुत सुंदर
Waah !!!
sukriya
सायद आप को बुरा लगे पर जनाब रोने वालो का साथ दुनिया नहीं देती है ! अगर जीना है हसना सीखना हो गा ,वैसे भी चंद दिनों की जिन्दगी होती है अगेर रोते रहे गे तो जिए गे कब .........तो हसना सीखिए ..गाना सीखिए ....इतिहास पर नहीं भविष्य पर ..भविष्य को जितना सीखिए ....तब गजल और कबिताय भी हस्ती दिखे गी .
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