Wednesday, June 9, 2010

कर्मठ दिवस में भी रहे सत्य का बस मंजू चैन

मैं जगती रही
जग सो गया
चैन मन मुग्धा हो गया
कुछ क्षण जिंदगी ठहर गई
मैं जीवन संचेतना संग बह गई
है कोलाहल मन मेरा
नहीं एक पल का चैन
मैं जाग्रत रही अभी
जग क्यों सो गया
मृत्य सा जीवन क्यों होगया
अनंत प्रश्नों की श्रंखला
अनंत उत्तर की विषमता
रहा गया अब
प्रश्नों शिविर
मन में है तृष्णा
यहाँ सब कैसे होगया

एक सी आखे /एक से सपने/एक सी रैना
फिर क्यों नहीं चेतन मन में चैन
मैं नहीं चाहती
जग यूँही सोता रहे
मृत श्रंखालायो में खोता रहे
आज मन में चाह इतनी
रहे सदा की रैन
पर जाग्रत रही हमेसा मन
कर्मठ दिवस में भी रहे सत्य का बस मंजू चैन

1 comment:

अरुणेश मिश्र said...

संसार की स्थिति की रचना ।
प्रशंसनीय ।