Monday, July 5, 2010

टूटा पत्ता शाख का मे

टूटा पत्ता शाख का

डूउद रही जीवन रस्ता

कंटक वन है बस मेरा पथ

जीवन एक संघर्ष

संघर्षो का साहस

लेकर निकल पड़ी मै

अब जीवन पथ पर

कैसी संध्या

कैसी प्रभात

अब दोनों हे मेरे दर्पण

हे खुदा अब तू अपने पनाह में मुझे लेले

2 comments:

अरुणेश मिश्र said...

रचना स्वानुभूति की अभिव्यक्ति है ।
प्रशंसनीय ।

अरुणेश मिश्र said...

रचना स्वानुभूति की अभिव्यक्ति है ।
प्रशंसनीय ।