मै हडबडा कर झटके में उठी और इधर उधर देखने लगी, मै अपने कमरे में थी , सर पर पसीना था लेकिन गजब का आत्मिक संतोष था,मै तो सपना से जगी थी, मै देख रही थी कि रामायण का वही पुराना दृश्य मेरी नजरो के सामने से गुजर रहा था राम लंका विजय कर सीता से मिलने जा रहे थे ख़ुशी का माहौल था
अचानक राम ने सीता को अग्निपरीक्षा देने को कहा "कि तुम साबित करो कि इतने दिन परपुरुष के कैद में रह कर आई हो क्या तुम पवित्र हो "
सीता चिल्ला उठती है " मै अग्निपरीक्षा जरुर दूगी लेकिन इस अग्नि से आप को भी गुजर के यह साबित करना होगा कि आप भी उतने पवित्र है जितनी की मै " ,
मै अवाक् रह गई यह कैसी रामायण चल रही है
फिर अचानक मुझे सीता के चेहरे में शीलू, दिव्या, शशि, मधुमिता ,रूपम पाठक ...............
दिखाई दी और दिखी इस तरह कि तमाम चेहरे जो आज के दौर में सामन्ती पुरुष समाज कि जद्तियो जादतियो को सहने के बजाये खुल कर विरोध करती नजर आ रही है और मुझे महसुश हो रहा था कि परदे के पीछे नारा लग रहा है
"नारी मुक्ति आन्दोलन के १०० साल जिन्दाबाद"
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