हंसी आती है फेसबुक/और ब्लॉग कविताओ को पढ़ कर
क्योकि इनमे पीड़ा और पतिरोध तो होता है पर पुरुष के पति प्रेम ही छाप भी होती है
सच तो यह है
खुद की तलाश करते करते
तुम थकती क्यों नहीं
क्यों नहीं खड़ी होती नारी इंसाफ के लिया
बस कविताए लिखती रहती हो बेचारी बन कर
हमें भी बाचारी बताती होशयद हमेशा लिखती रहोगी नारी का उपहास के लिया
उफ़
उफ़
बस करो अब थक गई हूँ
इन रोनी कविताओ को पड़कर
लिखना है तो किसी नई झासी की रानी की कविता लिखो
लिखना है तो आसमान को छुते हुआ हाथ की उचाई पर लिखो
लिखा नही तो नारी सम्मान पर लिखो
बस माँ, बेटी, बीवी , और रखेल की कविता ही लिखती हो क्यों
क्यों
क्यों
क्यों
?
अरे नारी का कोई सम्मान भी है
बस बेचारी बनती रहती हो
लगता है तुम्हारी यह कविताये
हमें बस रुलाती ही रहेगी
तुम कहती हो
यही है नारी जीवन का इतिहास
तो tod do अपना कलम
क्योकि
इतिहास और कविता कहानिया यदि रुलाती है तो
उन्हें पड़ना लिखना बंद करदेना चाहिए
ऐसा इतिहास नए जीवन का सर्जन नहीं कर सकता
इतिहास से सिख लेकर ही वर्तमान का सर्जन होता है
यदि इतिहास रुलाता है
तो वर्तमान भी रोता है
और यदि वर्तमान रोता है
तो भविष्य अन्धिकार मै ही होगा
तुम कहती हो
अम्मा ने हमें तो यह सिखया था
अरे
अम्मा की उगली पकड़ कर ही बेटिया चलती है
अम्मा के जीवन की किताब जैसी ही बेटी बनती है
अम्मा यदि प्रतिरोध करती
तो आज उनकी बेटी सारे आम निसहाये ना होती
अम्मा के कलम से रचि किताब जब बेटी पढती है तभी तो
समाज में आशु बहा जीवन भर अपनी बेचारगी के लाश को वो ढोती है
हँ यह भी सच ही है
यदि इतिहास के दर्द से प्रतिरोध जागता
तो वो इतिहास के लेखो से क्रांति भी अशक्ति थी
यदि पहली महिला सती होने से खुद को मन करती
तो अनगिनत महिलाए सती ना होती
यदि पडली महिला बिकने की बजाये मरना पसंद करती
तो आज कोई महिला सरे आम ना बिकती
यदि पहली महिला अपने गर्भ में अजन्मा बच्ची को गर्भ में मारने से inkar kardeti तो
गर्भी में कोई मासूम ना मरती
2 comments:
वाह बहुत बढिया ...सत्य के साथ सार्थक रचना
जिसको पढ़ने और बात की गंभीरता को समझने वाले कम मिलेंगे ...
sukriya anju ji
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