मेरे कविताओ ने
शब्दों के परपंच का
तरीका सीख लिया है
मेरे गीतो ने उन्माद के स्वरों में
गाने के लय को पकड़ना सीख लिया है
हा सच है
मैने सीख लिया है
दुनिया के हर उतर चड़ाव में जीना
अब मुझे कोई भी स्वर विचलित नहीं करता है
ना ही कोई शब्दवेधी विचार
मेरे मन मस्तिस्क को अब
कोई उल्काए नहीं घेरती
और ना अब अँधेरे से मुझे डर लगता है
ना तो अब खोने व पाने का भय होता है
ना जीवन में आने वाले उफान की कल्पना
बस एक रास्ता और उसपर चलते मेरे पग
ना जीवन की रंच थकान
और ना रात और दिनके ग्रहण में फसा यह तन !!
है तो बस इसके सत्य और सत्य के भीतर
छिपा झूठा आनंदवन
हा अब मेरे पास एक ही खजाना है
ढलते सूरज की रोशनी और
मेरी मुठी में छिपी अतीत की
दो मुठी राख
और मेरी हाथ की रेखाओ में
आने वाले भविष्य का वर्तमान
नहीं पता की यह रेखाओ का माया जाल मुझे कहा ले जायेगा
पर पता है
ये कुछ का कुछ इतिहास जरुर रचायेगा
8 comments:
क्या कहने
बहुत सुंदर
बहुत अच्छे ......थोड़ी और ऊपर .....कल्पना को ले जाया जाये जी !
और मेरी हाथ की रेखाओ में
में आने वाली भविष का वर्तमान
नहीं पता की यह रखो का म्याजल मुझे कहा ले गए गए
पर पता है
ये कुछ का कुछ इतिहास जरुर रचाये
.. ..
ithas apne aap ko kabhi nahi duhrata hai.. jo kuch achha ban padta hai wahi ithas ban jaata hai..
..bahut sundar prastuti..
sukriya aap sabka
बहुत सुन्दर और सारगर्भित कविता, अच्छी लगी,बधाईयाँ !
सुंदर कृति। बधाई।
आपका हमारे ब्लॉग पर आना और सही-सच्ची बात बताना अच्छा लगा।
मेरे कविता क्यों, मेरी कविता क्यों नहीं?
वाह ... कल्पना की लाजवाब उड़ान ... अच्छा लिखा है ..
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