Wednesday, November 2, 2011

मेरे कविता



मेरे  कविताओ ने 
 शब्दों के परपंच  का 
 तरीका सीख लिया  है 
मेरे  गीतो  ने उन्माद के  स्वरों   में
 गाने  के  लय को पकड़ना   सीख लिया  है 
हा  सच है 
मैने  सीख लिया  है 
दुनिया के हर उतर चड़ाव में जीना 
अब  मुझे कोई भी स्वर विचलित नहीं करता है
ना ही कोई शब्दवेधी विचार 
मेरे मन मस्तिस्क को अब 
कोई  उल्काए नहीं  घेरती   
और ना  अब  अँधेरे से मुझे डर लगता है  
 ना तो अब खोने व  पाने का भय होता है 
ना जीवन में आने वाले उफान की कल्पना 
बस एक रास्ता और उसपर चलते मेरे पग 
ना जीवन की रंच थकान 
और ना रात और दिनके ग्रहण  में फसा यह तन   !!
है  तो बस इसके सत्य और सत्य  के भीतर  
 छिपा झूठा आनंदवन 
हा अब मेरे पास  एक ही खजाना है 
ढलते    सूरज की  रोशनी और 
मेरी मुठी में छिपी  अतीत की 
दो मुठी राख 
और मेरी हाथ की रेखाओ में 
आने वाले  भविष्य  का वर्तमान
नहीं पता की यह रेखाओ   का माया जाल  मुझे कहा ले जायेगा 
पर पता है 
ये कुछ का कुछ इतिहास जरुर रचायेगा

8 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

क्या कहने
बहुत सुंदर

Regal Manav Srijan Social Welfare Society said...

बहुत अच्छे ......थोड़ी और ऊपर .....कल्पना को ले जाया जाये जी !

कविता रावत said...

और मेरी हाथ की रेखाओ में
में आने वाली भविष का वर्तमान
नहीं पता की यह रखो का म्याजल मुझे कहा ले गए गए
पर पता है
ये कुछ का कुछ इतिहास जरुर रचाये
.. ..
ithas apne aap ko kabhi nahi duhrata hai.. jo kuch achha ban padta hai wahi ithas ban jaata hai..
..bahut sundar prastuti..

inqlaab.com said...

sukriya aap sabka

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित कविता, अच्छी लगी,बधाईयाँ !

देवेंद्र said...

सुंदर कृति। बधाई।

मनोज कुमार said...

आपका हमारे ब्लॉग पर आना और सही-सच्ची बात बताना अच्छा लगा।

मेरे कविता क्यों, मेरी कविता क्यों नहीं?

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... कल्पना की लाजवाब उड़ान ... अच्छा लिखा है ..