जख्मो में कराहती
खुद से बेचैन हो
अपने खुदा के सामने
देख अब धरती पनाह मागती
बतियों की अस्मतो खलते रावन
कैसे माँ रोये नहीं
क्यों नहीं कराहती ?
ज्ल्रह बचपन कापती इंसानियत
अपने खुदा के सामने
देख अब धरती पनाह मागती
भूख से रोते बच्चे
वीरान हो बंजर जमी
गर्भ में कराहती
दर्द को समेत तन में
रोती चिल्लती
अपने खुदा के सामने
देख अब धरती पनाह मागती
जुल्म के बोझ को
अब न वो सह पायेगी
बस्तिया अश्को के शैलब से
युही भर्ती जाएगी
देखना एक दिन धरा
खुदा के गर्भ मे युही समा जाएगी
थक गयी है आज धरती
सोचती पुकारती
अपने खुदा के सामने
देख अब धरती पनाह मागती
9 comments:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .........!!
bahut khub........man ko chu lene wali kriti
बहुत सुंदर,
क्या कहने
aap sabka sukriya
सच्चाई कुछ ऐसी ही है कि आँखे नम हो जायें। भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
लहु से लाल धरती
जख्मो में कराहती
खुद से बेचैन हो.nice
aap sabhi ka dhnye vad
समस्याओ को लोगो के जेहन में बैठना ही आज के समय में समाज सेवा है बहुत अच्छे !
समस्याओ को लोगो के जेहन में बैठना ही आज के समय में समाज सेवा है बहुत अच्छे !
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