Sunday, March 4, 2012

वो बस मान्‍या का शरीर चाहता था! वो बस मान्‍या का शरीर चाहता था!


मैने ने जब यहाँ कहानी लिखी थी तब नहीं सोचा था की इस कहानी का हशर क्या होगे? क्या समाज इस लड़की को सम्मान देगा ? क्या समाज नारी भावना को समझेगा ? 
नहीं कभी  नहीं ....  
महिला किसी पुरुष पर उगली उठाई यहाँ समाज   कैसे बर्दाश करसकता है  ! आज मुझे लगता है की मान्य को उगली उठाने से पहले मर जाना चाहिए था 


इस कहानी में  भावेश  दर असल ****** *****है ......एक कमीना पत्रकार  

इसमें गलती लड़की की ही है जिसने दिमाग से नहीं हीं दिल से काम लिया 
उसे चाहिए था की वो बिहार की सीलू   तरह काम करती तो शयद पूरे समाज की नजरे खुलती 




 इंटरनेट के जाल में फंसी लड़की की कहानी : झूठे प्रेम का सब्‍जबाग दिखाकर उसकी भावनाओं से खेलना चाहता था भावेश : सुबह का समय था, मान्या अपने ऑफिस में बैठी अपने कंप्यूटर में कुछ मेल पढ़ रही थी और उनके उत्तर दे रही थी कि अचानक उसने एक फ्रेंड रिक्‍वेस्‍ट देखा, उसने सोचा यह कौन है, चलो उसका प्रोफाइल देखते है? मन में आए विचार के अनुसार वह उस प्रोफाइल पर गई और उसे पढ़ने लगी...नाम-भावेश, पता बनारस और विचारों से एक कन्‍फ्यूजिंग इन्सान...पर शब्दों में आदर्श महिलाओं के प्रति उच्च विचारधारा! उसके प्रोफाइल को पढ़कर मान्या को लगता है, चलो एक अच्छा व्‍यक्ति लग रहा है, उसने भावेश के दोस्ती के निमंत्रण को सह्दय स्वीकार कर लिया और अपने कार्यो में लग गई. दूसरे दिन सुबह जब मान्या ने अपना कंप्यूटर खोला तो भावेश को ऑनलाइन पाया और भावेश ने मान्या को सुबह का नमस्ते भी भेजा। मान्या ने भी उन्हें सादगी से जवाब दिया और अपने रोजमर्रा के कामों में लग गई. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा.
एक दिन सुबह मान्या अपनी एक मित्र से बात कर रही थी, तभी भावेश ने उसे सुबह का नमस्ते किया, उसने उन्हें जवाब दिया और भावेश के पूछे हुए प्रश्नों का उत्तर देने लगी. भावेश मान्या से कहता है- खुद की तलाश हमेशा कठिन होती है और जो एक बार खुद को खो देता है, उसे ढूंढना मुश्किल हो जाता है. इसके बाद भावेश ने लिखा- हम भावेश हैं, आपका नाम क्या है? मान्या सिंह. मान्या- कहां से? भावेश- बनारस से हूँ, यहाँ की सुबह बेहद सुन्दर होती है, रेत के बंजरों पर बादलों की गड़गड़ाहट हमेशा अच्छी लगती है. मान्या -यह हमने सुना है, गंगा का किनारा और संतो की बाणी और शंखो की धुन. भावेश -आप कहां से? मान्या- हम लखनऊ से हैं, "सिटी ऑफ़ नवाब्‍स." भावेश- जानकर अच्छा लगा, मैं भी कभी-कभी वहां आता हूँ और मुझे लखनऊ वैसे भी कभी अजनबी जैसा नहीं लगा. मान्या- यह जानकर ख़ुशी हुई कि आप को हमारा शहर अच्छा लगता है.भावेश- कुछ अलग सा है. आप क्या करती हैं? मान्या- कुछ नहीं एक जॉब की तलाश कर रही हूँ! अच्छा अब हम चलते हैं, आप से फिर बात होगी! खुश रहिए और अपना ख्याल रखियेगा. लेकिन भावेश मान्या को बड़ा अजीब उत्तर देता है. भावेश- मुझे तो ख़ुशी होनी ही थी, दोस्ती का हाँथ जो पहले हमने बढ़ाया था.
अगले दिन सुबह के समय मान्या ऑनलाइन होती है और भावेश को अच्छी सुबह की बधाई देती है. पर भावेश उससे कहता है कि मेरे सपने पूरे नहीं होते, जब कोई कहता है-जा तेरे सपने पूरे हों, तो हंसी आती है. मान्या कहती है- मेरे सपने पूरे हो या न हों पर मैं कोशिश जरुर करती हूं और आप इतनी निराशावादी बातें क्यों करते है? भावेश- नहीं, निराशावादी मैं तो हूँ ही नहीं! बात सपनों के सच होने की और न होने की है. शायद इसलिये सपने नहीं देखता. कल आप बात करते-करते अचानक चली गईं तो मैंने आपकी प्रोफाइल पढ़ी, कुछ अलग हटकर था. मान्या ने उत्तर दिया हम ऐसे ही हैं, और इस तरह उनकी बातों का सिलसिला चलने लगा, पर भावेश के दिल में क्या चल रहा था, वो इस सच से अनजान थी! चार-पांच दिन के बाद भावेश ने मान्या से उसका फ़ोन नंबर मांगा. पहले तो मान्या मना कर देती है! पर बाद में भावेश की बातों पर विश्‍वास कर के अपना नंबर उसे दे देती है! उसी दिन भावेश ने मान्या से कहा कि वो उससे बहुत प्यार करता है, पर मान्या ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
उसी वक्त भावेश उससे कहता है-मान्या तुम्हें हमसे प्यार करना ही होगा. यह बात मान्या को बड़ी अजीब सी लगती है. मान्या को लगा कि देखो यह अपनी बात के पीछे लग गए हैं, हम इन्हें अच्छी तरह से जानते भी नहीं हैं और यह हमसे कहते हैं-हमसे प्यार करते है! क्या ऐसे भी कोई किसी को प्यार करता है, पर भावेश का पागलपन बढ़ता ही जा रहा था. मान्या को उनसे डर सा लगने लगा! तब मान्या भावेश से कहती है कि अगर वो उसे प्यार करते हैं तो उससे विवाह कर लें. पर भावेश विवाह करने से मना कर देता है और अपने परिवार की बहुत सी समस्या बताता है... उसकी बहन का विवाह आजीवन नहीं हो सकता तो वो कैसे विवाह कर सकता है और उसकी एक भाभी हैं, जिसकी और उनके बच्चो की उसे ही देखभाल करनी है, क्योंकि उसके भाई की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो गयी है और उनकी माँ चाहती है कि वो अपनी विधवा भाभी से शादी कर ले.
मान्या कहती है कि अगर ऐसा है तो उसे अपनी भाभी से प्यार का प्रस्ताव रखना चाहिए न की उससे. इसपर भावेश कहता है- वो मान्या से प्यार करता है, किसी और से शादी नहीं कर सकता. मान्या भावेश के इस शब्दजाल में फंस जाती है! मान्या को लगता है- शायद  भावेश सच बोल रहा है. वो उसके प्रेम-प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है. मान्या कहती है- भावेश मुझसे विवाह कर लो तो  हम-दोनों एक साथ हर समस्या का सामना कर लेंगे. भावेश नहीं मानता है और कहता है- वो आजीवन बिना विवाह के ही रहेगा. पता नहीं क्यों मान्या उसकी बातों पर भरोसा कर लेती है और भावेश से कहती है कि वो दोस्त की तरह से आजीवन रह सकते हैं, पर भावेश नहीं मानता है. एक दिन भावेश मान्या के शहर उससे मिलने आता है. उस दिन मान्या बहुत खुश होती है, क्योंकि जीवन में पहली बार किसी अपने से मिलने जा रही होती है, पर जब वो भावेश से मिलती है तो उसकी आत्मा कहती है कि कहीं कुछ गलत है. वो भावेश को सब से मिलाती है पर भावेश उसे किसी से पहचान कराने से भी डरता है और बस वह उससे कुछ ऐसी डिमांड करता है जो कोई भी लड़की पूरे नहीं कर सकती हो. मान्या उसकी इच्छा पूरा करने से मना कर देती है. वह भावेश को बहुत समझाती है कि वो एक अच्छा दोस्त बन सकती है, पर भावेश का बर्ताव बड़ी अजीब सा हो जाता है, क्‍योंकि भावेश का मकसद सिर्फ मान्या के शारीर को पाना था!
बड़ा अजीब सा लग रहा था मान्या को, क्या यह वही इंसान है, जो उससे रो-रो कर कहता था कि वो उससे प्यार करता है और उसक बिना जी नहीं सकता ? यह वो नहीं कोई अजनबी सा इन्सान लग रहा है! पर वो तो इस इंसान से प्यार करने लगी थी. उसने तो इस इंसान के साथ अपना पूरा जीवन बिताने के सपने देखे थे. उसके पास भावेश पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था, क्योंकि वो इस इंसान से दिल से जुड़ गयी थी. भावेश चला जाता है और मान्या उसे चाह कर भी नहीं रोक पाती. धीरे-धीरे समय का चक्र आगे बढता है. मान्या का विश्वास भावेश से हटने लगता है. भावेश की रोज नयी महिला मित्रों की संख्या बढने लगती है तो वो मान्या को भूलने लगता है. वो उससे बात नहीं करता. उसके फोन का भी जवाब नहीं देता. मान्या दिन पर दिन मरती जा रही थी और वो अपने लिए कुछ नहीं कर पा रही थी. आज उसे वो बातें बेमानी लगती हैं- प्यार उससे करो, जो प्‍यार तुमसे करे. इसी बात पर विश्वास करके ही तो उसने भावेश से प्यार किया था!
एक दिन मान्या भावेश को फोन करती है और बहुत सारी बातें करती है. इसी बीच भावेश उस औरत का नाम लेता है, जिसे वो अपनी भाभी बताता था! तब मान्या भावेश से पूछती है कि तुम्हें  आज सच बताना होगा क्या रिश्ता है तुम्हारा इस औरत से? तब भावेश कहता है- उसने उस औरत से शादी कर ली है, क्योकि शादी करना उसकी मजबूरी थी. वो मान्या से मिलता है और बहुत सारी झूठी कहानियां सुनाता है, पर मान्या को उसकी किसी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहा जाता है सच अपने आप बोलता है. किस्मत ने भी सच जानने में मान्या का साथ दिया. इस मुलाकात के कुछ दिन बाद ही भावेश के सहकर्मी से बात होती है, जिसकी पहचान भावेश ने मान्‍या से करा दी थी. वो मान्या को बताता है कि भावेश की शादी तो दस-ग्‍यारह साल पूर्व ही हो चुकी है  और उसके दो बच्चे भी हैं, आज उसकी शादी की सालगिरह है. यह सुनकर मान्या के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है, उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा जाता हैं. उसे कुछ भी सुनाई नहीं देता और कुछ भी नहीं दिखाई देता, मानो किसी ने उसके सारे सपने एक ही झटके में तोड़ दिए हो! जो इंसान उसके सामने महान बनने का ढोंग कर रहा था, आज उसका गंदा और बदनुमा चेहरा उसके सामने आ गया था.
वह भावेश से चीख-चीख कर पूछती है- अगर वो शादी-शुदा था तो उसने उससे प्यार का झूठा नाटक क्यों किया? उसके जज्बातों से क्यों खेला? भावेश के पास मान्या के एक भी प्रश्न का उतर नहीं था, और ना ही सच का सामना करने की हिम्मत, क्योंकि उस इन्सान का झूठ सामने आ चुका था. एक और लड़की के विश्‍वास के साथ एक कमीना इन्सान खेल चुका था. वो लाचार थी क्योंकि वो एक ऊंचे कद का इन्सान था! कुछ दिन बाद पता चलता है कि यह इन्सान न जाने कितने महिलाओं और लड़कियों के जीवन से खेल चुका है और अभी भी खेल रहा है! तब उसने अपने नाम और चरित्र की परवाह किये बिना भावेश का सच दुनिया के सामने लाने का प्रयास भी किया! पर उसका यह प्रयास निरर्थक रहा क्योंकि उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था. उस इन्सान के पिता और पत्नी को जब मान्‍या ने यह बात बताई तो भावेश की पत्नी ने मान्या के चरित्र पर ही सवालिया निशान लगा दिया! भावेश ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी अपना गुनाह छुपाने के लिए. उसने मान्या को तो जान से मारने की धमकी तक दे डाली!
मान्या ने हर किसी से सहायता  मांगी, पर उसकी लाचारगी ने उसे हर जगह से खाली ही लौटाया. मान्या पूरी तरह से टूट चुकी थी, उसके जीवन के सारे रास्ते खत्म हो चुके थे, पर उसने हर नहीं मानी और उसने इसका न्याय भगवान पर छोड़ दिया.  इस सच्‍ची घटना को मैंने भी कहानी की शक्ल दे दी. अब देखते हैं अंत क्या होता है इस सच्‍ची कहानी का! पर मैं जानती हूँ कि आज के परिवेश में हार सिर्फ और सिर्फ नारी की ही होती है! कोई कितना भी सच क्यों न बोले पर उसका सच पुरुष के सामने बौना हो जाता है! कितनी बड़ी विडंबना है कि सच को अपनी बात साबित करने के लिया मरना पड़ता है और जब सब खतम हो जाता है तो लोग चंद आंसू बहाने के लिए चले आते हैं!
इस घटना को मैंने अपनी आंखों के सामने घटते देखा है. मेरी लाचारगी और बेबसी ये है कि मैं भी इस मामले में अब कुछ भी नहीं कर सकती! तब लगा कि इसे समाज के सामने रखना चाहिए. समाज ही इस सच पर निर्णय करे. पर जानती हूँ, यहाँ भी हार नारी की ही होगी! क्योंकि नारी ही नारी की दुश्मन होती है! यदि एक नारी दूसरी नारी के साथ हो तो कोई उसे वेश्या या रखैल कहने का साहस नहीं कर सकता! ना ही कोई उसे डायन  कहकर उसके जीभ काट सकता है,  ना ही वस्‍त्रविहीन करके उसे पूरे गाव में घुमा सकता है! पर मुझे पता है, यह सब होता रहा है औरा यह आगे भी होता रहेगा, क्‍योंकि कोई भी युग तभी बदलेगा जब इंसानों के अंदर इंसानियत जागेगी. और हर भावेश को अपनी गलती पर शर्मिंदगी होगी और पश्‍चाताप होगा! जब कोई औरत किसी की बेचारगी पर ताने नहीं मारेगी. ये कविता नारी के पीड़ा को व्‍यक्‍त करती है और जब तक इसे बदला नहीं जायेगा तब तक मान्‍या जैसी लड़कियों को दुख झेलते रहना पड़ेगा.
है यह नारी हृदय पीड़ा से भरा,
यह नर क्या जाने विदित नारी मन को ?
करा रहा है बस अपमान इसका
कभी पिता, कभी पति, कभी प्रेमी, कभी पुत्र बन कर.
नारी  जीवन करूणा से भरा
कैसे छिपे इसकी अनंत व्यथा
आज धरा को बता  दो
समेट ले अपनी सब सत्ता
देखते हैं, यह  नर कब तक
करेगा विकृत नारी सम्मान को,
ना होगी नारी
ना होगी कोई अभिप्रेरणा इसका झूठा आडम्बर
नहीं करा सकेगा तब
मानसी भाव को बेबस
हे ईश!
मिटा दे नारी को इस धरा से
दे नर को बस नर का दान
बचा लें यहाँ नपुंसक अपने घर का मान.

लेखिका मनु मंजू शुक्‍ला अवध रिगल टाइम्‍स की संपादक और समाज सेविका हैं.

Comments
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7 comments:

bikharemoti said...

मनु जी आपने बहुत अच्छा लिखा है...पर इस तरह के हादसों के लिए कहीं न कहीं नारी ही जिम्मेदार है...उसे मजबूत होने की जरूरत है ....

http://bikharemotee.blogspot.com/

inqlaab.com said...

ji aap sahi kah rahi hae

anita said...

manu ji fb ki duniya me aane ke baad mene bhi ese anek purushon ko dekha hai orton ki bhawnao se khilwad karte hue.ese logo ko kabhi vishwas yogya nahi samjhna chahiye.......achha ho ki ese logo ka chehra yatha sambhav sabke samne laane ki kosis ki jani chahiye....anu

inqlaab.com said...

anita ji ham yah bat achi trha jante hae par ab samye agya hae ki hame sach ke sath khda hona hoga ..... bina anjam ki parvah kiye

आशुतोष कुमार said...

धूर्तता के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं होती .और धूर्तों से भरी दुनिया में मूर्खता के कीमत जरूर चुकानी पड़ती है .अगर आप इतनी बड़ी बेवक़ूफ़ हैं कि प्यार जैसे शातिर - झूठे लफ्ज़ में अब भी यकीन करती हैं ; और लडकी होने के नाते बचपन से बड़े होने तक अपनी जिस भावुकता को दबा कर रखना पड़ा है ,उस की विस्फोट -आतुरता को सम्हाल पाने में असफल हो रही हैं , तो आप को इस की कीमत चुकानी पड़ेगी. ..यह कहने का मतलब भावेश शिकारियों को बरी करना और मान्याओं को अपराधी ठहराना न समझा जाए .मूर्खता अपराध नहीं है . अपराधी भावेश है , मान्या (एं) नहीं .भावेश को किये की सज़ा मिलनी चाहिए . कम सेकम उस का सक्रिय सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए . लेकिन दुनिया ऐसी है कि अपराधियों को इनाम मिलता है , और उस की कीमत सब से मासूम लोग चुकाते हैं .

inqlaab.com said...

इस लेख को जब मने लिखा था तो भी मेरा उद्देश था सच को सामने लाना और महिलाओ को बतना था की नेट पर किसी पर विश्वाश न करे क्यों की नेट का जीवन और सच में फर्क है ! आप एक लड़की है यदि आप के चरित्र पर उगली उठी तो आप का नुकसान होगा इन भावेश जाए पुरषों का कुछ नहीं जाएगा ! क्योकि लड़की का चरित्र कच सा होता है जो एक पत्थर मरने सी बिखर जाता है और उसे समेटना मुस्किल होता है
बहुत से लोग ऐसे है जो इन जैसे इन्सान के सच को जानते है पर समाज के डर से सच का सामना करने से डरते है पर प्रश्न उठता है कबतक ?

मै बस इतना कहना चाहू गी

आइना सब देखता है
तेरे चहरे पे क्या लिखा है
तू लाख छुपाले अपने चेहरे को
अपने दिल में बठे खुदा को क्या जवाब देगा

Ashok Kumar pandey said...

पढ़ा सुबह ही था. कुछ बैठकों के दौर और कुछ यह इंतज़ार कि वे महिलायें कुछ कहें जिन्होंने अलग से कई बार इस सन्दर्भ में बात की है, कि अब तक रुका रहा. खैर, यह सब अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग मौकों पर बताया था. इस घृणित व्यक्ति के बारे में जब पड़ताल की तो काफी-कुछ पता चलता गया. यहाँ महिलाओं के बीच उसने जो गंद फैलाई है वह भयावह है. खुद को प्रगतिशील दिखाने वाला यह इंसान असल में एक पक्का सामंती, पुरुषवादी, जातिवादी और घटिया व्यक्ति है. आशुतोष भाई की वाल पर जब मैंने इसके उन खेलों की शुरुआत का ज़िक्र किया तो वह उसे भारी पड़ा और उसने मुझे अन्फ्रेंड तथा ब्लाक करने में ही गनीमत समझी. अब जब उसका असली चरित्र सामने आ चुका है तो उन महिलाओं की भी खुल के बोलने की जिम्मेवारी बनती है जिन्होंने उसके इस घटिया व्यवहार के चलते काफी-कुछ झेला है. आखिर उनसे उम्मीद तो नहीं की जाती न जिन्होंने इसका फ़ायदा उठाया है.

जो मित्र उन महिलाओं की "बेवकूफियों" को इंगित कर रहे हैं उन्हें ऊषा प्रियम्वदा के उपन्यास "पचपन खम्भे लाल दीवारें" का वह संवाद याद करना चाहिए "प्रेम में हम अक्सर वही मूर्खताएं करते हैं जिन्हें आम ज़िंदगी में मजाक का सबब समझा जाता है (स्मृति से लिख रहा हूँ)" ... देखना यह चाहिए कि किसका मकसद कितना पतित है. कौन उन "मूर्खताओं" को अपने घिनौने मकसद के लिए उपयोग कर रहा है...