ये कापुरुष कब तक नारी जीवन स्वेदना से खेलते रहेंगे , नारी जीवन को कबतक आत्महत्या की काली गर्द में फेंकते रहेंगे
पुरुष और लडकियों की मानसिकता में बहुत अंतर होता है ! पुरुष अपनी भडास को ओरतो पर चिल्ला कर निकल लेता है! क्योंकि उसका कम है ओरत के विचारो को दबाना ! पर एक लड़किया अपनी सारी भडास अपने अन्तःकरण में समा लेती है , और अग्नि की तरह जलती रहती है ! हो सकता है सारे लोग इस विचार से इतफाक रखते है ! पर यदि यह मत गलत होता तो अज के परिवेश में महिला आत्महत्या दर बड़ता नहीं ! आंकड़ों का सत्ये कहता है महिला आत्महत्या दर पुरषों की अपेक्षा १० गुना अधिक है !
यदि आंकड़ों पर द्रष्टि डालें तो देखेंगे की बहार काम करने वाली लडकियां जो आत्म निर्भर हैं तथा समाज में उनका अपना मुकाम है तथा वो अपने जीवन के सारे फैसले स्वयं ले सकती हैं! इसके बावजूद भी उन महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक है चाहे वो आम लड़की हो या सेलेब्रिटी जब उन्हें प्यार में धोखा मिलता है तो वो धोखे का आघात बर्दाश्त नही कर पाती है ! तब अपने जीवन ko समाप्त करना ही एक आसान रास्ता मानती है !
अभी हाल ही में प्रसिद्ध मॉडल विवेक बाबा ने आत्महत्या करली ,कारण अपनी प्रेमी का धोखा और तिरस्कार बर्दाश्त नही कर सकी तो उन्होंने आत्महत्या कर ली वाही मिसइण्डिया रही नफीसा जोसेफ ने भी अपने प्रेमी से धोखा खाकर कुछ समय पूर्व आत्महत्या कर ली थी, ऐसे ही यदि आंकड़ों पे दृष्टि डालें तो देखेंगे की रोजाना कोई न कोई लड़की प्रेम में आघात पाकर अपनी जीवन लीला समाप्त करती जा रही है !
मनोविज्ञानिको का मत्त है "आज के परिवेश में जहाँ लोगों को अपने जी\वन निर्वहन के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है घर और बहार अत्यंत मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है वही प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनीय होता है और उनके लिए जीवन समाप्त करना एक आसान उपाय लोगों को दीखता है "
चाहे कोई औरत पूरी तरह स्वतंत्र या आत्मनिर्भर क्यों न हो प्यार का धोखा उसके लिए असहनीय होता है क्योकि स्त्रियों में संवेदनशीलता एवेम भावुकता अधिक होती है पुरुषमानसिकता स्त्रियों की मानसिकता से बिलकुल विपरीत होती है! पुरुष का आकर्षण स्त्रियों से शारीरिक रूप से होता है ! उसका प्रेम शरीर से शुरू होकर उसी पे समाप्त हो जाता है और वो आसानी से एक को छोड़ कर दूसरे से जुड़ जाता है! उसके लिए प्रेम प्यार की बातें आम होती है`! परन्तु एक लड़की किसी भी पुरुष से आत्मा तथा मन से जुडती है और जब उसे आत्मिक आघात होता है , तो वो अघात उसके लिए असहनीय होता है और तब उसके सामने सबसे आसान विकल्प बचता है अपनी जीवन लीला को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर दें ! स्त्री मानसिकता मतलब समय से पहले अपने आप को उम्रसे बड़ा मनलेना ! इसका बड़ा कारण ईश्वरी की भी बेइंसाफी है ! एक पुरुष 60 वर्ष की आयु में भी पिता बन सकता है पर एक स्त्री का ३५ से ३७ वर्ष की आयु के बाद उसका माँ बनना कठिन होता है और आज जहाँ लोग अपना करियर बनाने के लिए ३० का आंकड़ा पार कर जाते हैं तो उस उम्र में प्यार में धोखा खाना उनके लिए असहनिये हो जाता है और उनका सारा आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है! तब या तो अपनी पूरी उर्जा को इन्साफ की गुहार के लिए लगा देते हैं तब उनपर दूसरा आघात उनके चरित्र पर होता है जो उनकी आत्मा पर असहनीय प्रहार होता है! क्या किसी ने सोचा है कभी की महिला हो या लड़की उनमे संवीदनशीलता होती है क्या वो ऐसे ही मरती जाएँगी उन्हें भी जीने का हक्क है ! इन नपुंसक व का-पुरुषों को किसने हक्क दिया है रोज़ रोज़ लड़कियों एवम महिलाओं को ऐसे ही मारते जा रहे हैं!
उन्हें किसने हक़ दिया है कि झूठे प्रेम जाल में फंसओ और जब सच सामने अत hai तो वो इंसान भाग खड़ा हुआ और जब उसका सच समाज के लोगों और उसके पिता और पत्नी को बतया जये तो वो नारी चरित्र पर प्रहार करता है जान से मारने की भी धमकी देता है ! अब लड़की के पास दो रास्ते होते हैं या तो अपने सम्मान के लिए लड़ाई लड़े और अपने चरित्र पर प्रहार करने वाले को सबके सामने लाये
पर मै जानती हूँ की कोई भी लड़की किसी भी परुष का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती और वो जिस भी पुरुष से अपने इन्साफ की गुहार करेगी वो उसे इन्साफ नहीं दिला सकता क्यूंकि वो भी स्वयं पुरुष है तब लड़की मजबूर हो जाती है क्यूंकि उसका एक कदम उसके माता पिता के नाम पर सवालिया निशाँ लगा देता है उसके लिए तीसरा रास्ता बचता है अपने आपको अनंत अँधेरे में झोंक दे जिसमे वो तिल तिल मरती है पर उसको मरता हुआ कोई नही देख पाता
आज मेरा प्रश्न आज ईश्वर और समाज से है ऐसे नपुंसक पुरुष कब तक नारी जीवन स्वेदना से खेलते रहेंगे और हमे कब तक आत्महत्या की काली गर्द में फेंकते रहेंगे
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