Monday, April 2, 2012


आज मै सुबह लखनऊ से बाराबंकी जा रही थी दून एक्सप्रेस से ,गाड़ी में बहुत भीड़ थी मै अपने मित्र के साथ स्लीपर डिब्बे में चढ़ गई .खाली जगह देख कर हम बैठ गए ! गाड़ी अभी कुछ ही दूर चली हो गी की कर्कस आवाज में पर कानो को अच्छा लगने वाला गीत कानो से टकराया ,गाने के बोल थे ''रातो को उठ उठ कर जिनके लिए रोते है ...वो अपने मकानों में आराम से सोते है....'' उत्सुकता बस मैंने आवाज की दिशा में देखा ,सामने एक ८-९ साल की बच्ची हाथ में दो पथ्थरो का टुकड़ा लिए उसे बजाकर गाना गा रही थी और पैसे मांग रही थी ..मै ने अपने मित्र की तरफ देखा उन्हों ने मेरे हाथ में ५ का सिक्का रख दिया मैंने उस बच्ची को वो पैसे दे दिए ,वो आगे बढ गयी तो मेरे मित्र ने अख़बार मुझे पकड़ा दिया और एक खबर की तरफ इशारा किया .मैंने देखा ,की अख़बार में लडकियों के सिच्छा एवं विकास पर सरकार की कोशिश के बिसय में बड़ा सा लेख छपा था .मुझे पता नहीं केव वो लेख पड़ने का मन नहीं किया ,वो एक जोक सा लगरहा था ,मैंने सवाल के अंदाज में पूछा की क्या ये लड़की नहीं है एस जैसे बच्चियों का क्या भविष्य है ?
मेरे मित्र ने शालीनता से कहा की ये बच्ची या इन जैसे तमाम बच्चिया अपने उम्र से पहले बड़ी हो जायेगी ..आज हो सकता है की जो गाना ये गा रही है उसका मतलब उसे नहीं मालूम हो लेकिन जल्द ही ये जान जाये गी की इसकी सबसे बड़ी संपत्ति इसकी सरीर है जिसे लोग खा जाने के अंदाज में देखते है इसकी नजर में समाज एक जंगल की तरह हो जाये गा जहा पुरुष रूपी जानवर हमेसा मौके की तलास में रहते है मौका मिला तो कुछ भी करने से बाज नहीं आये गे..इनके लिए आजादी ,लोकतंत्र ,जीने का अधिकार, सरकार,कुछ भी मायने नहीं रखता ...इनके हिस्से जी आर पी की गालिया ही सरकारी आदेश है क़ानूनी फरमान है!
मेरे मुख से बरबस निकला ....इसका जिम्मेदार कौन है ?......गरीब के माँ बाप ,...कानून ....या ये समाज !
हमने कैसा समाज बना डाला है ??...........इसे बदलना हो गा !.......बदलने की कोसिस करनी हो गी ?
बाराबंकी स्टेशन आ चुका था हम ट्रेन से उतर गए पर ये सवाल मरे दिमाग में चड़ा रहा !...........कि क्या ये सरकार ,ये देश इनका नहीं है.?

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