मौत से पहले हार कैसे मान लू
मैं अभी हारी नहीं
जग को जीता कैसे मान लू
है पथ कठिन मेरा
रहा पत्थरीली
पर सत्य का सामर्थ
मान मेरा
क्यों दिशा को छोड़ दू
न्याय की कसौटी पर सच
अकेला होता है
इस कसौटी पर ही ताप कर
सोना खरा होता है
आज अग्नेमान
बन करा
स्वयं को जान लू
कल जगत भी
मेरा जीवनसत्य मान लेगा
1 comment:
सत्य के पक्ष मे जो खड़ा है ।
वह बड़ा है ।
रचना प्रशंसनीय ।
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