नारी स्वतंत्रता एक प्रश्न चिन्ह?
आधुनिक परिवेश में अगर देखा जाये तो नारी स्वतंत्रता एक प्रश्न चिन्ह है ! कारण अभी अभिनेत्री खुशबू से जुड़े लिविंग रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आये कुछ समय ही गुजरा था कि पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या या आत्महत्या का मामला सुर्ख़ियों में आ गया ! फिर लखनऊ में एक महिला को तीन मंजिला इमारत से नीचे फेंक दिया उसकी हालत बता रही थी कि लोग उससे दुराचार करना चाहते थे फिर देहरादून का एक किस्सा आया कि एक युवती की उसके ही प्रेमी ने चाक़ू मारकर हत्या कर दी फिर दूसरी न्यूज़ आती है कि मेरठ में एक पिता ने अपनी पुत्री को छत से नीचे फेंक दिया ऐसी अनगिनत घटनाएं अखबार और न्यूज़ चैनल की सुर्ख़ियों में बनी रहती हैं ये सारी घटनाएं नारी सुरक्षा पर एक सवालिया निशान लगा रही कि क्या नारी आज के परिवेश में स्वतंत्र और सुरक्षित है?
हमारी समाज की मानसिकता कहाँ जा रही है ? कहीं लड़कियों को उनके घरवाले मौत के घाट उतार रहे हैं तो कहीं जहाँ वो नौकरी करती हैं वहां उनका शारीरिक आत्मिक शोषण हो रहा है यदि कोई महिला इसके विरुद्ध खड़ी हो जाती है तो यह समाज उसे मृत्युदंड दे देता है क्या उसे इन घटनाओं पर कोई दुःख नहीं होता ? यह सोचने की बात है यह कैसी मानसिकता है कि एक स्त्री स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छानुसार अपना जीवन-यापन नहीं कर सकती और न ही समाज उसे इसकी इज़ाज़त देता है जो इस नियम-कानून को नहीं मानती उसे समाज से मृत्युदंड ही मिलता है हमारे पुराण नारी को देवी का दर्जा तो देते हैं पर उसे स्वतंत्र रहने की इज़ाज़त नहीं देते यूँ तो भगवान् शिव को अर्धनारीश्वर कहते हैं पर समाज स्त्रियों को पुरुषों के बराबर दर्जा देने से अभी भी कतराता है
यदि स्त्री की स्थिति पुरुषों के समान है तो आज भी स्त्रियों से दोगला व्यवहार क्यूँ? हमारे पुराण कहते हैं कि स्त्री का स्थान पुरुषों से भी उच्च है पर समाज कहता है कि स्त्रियों को ऊंचा उठने मत देना यह है आज भी ८०% नारियों की स्थिति !
"द सेकंड सेक्स" नामक पुस्तिका में सीमीन-द-बुआ ने कहा है कि मातृत्व सतात्मक समाज में स्त्रियों को आचरण की सुविधा थी तथा स्त्रियों की शुद्धता एक सुचिता की अपेक्षा कम की जाती थी तथा नारी को उस समाज में पूर्ण स्वतंत्रता थी पर जैसे जैसे समाज बदला और पितृ सतात्मक में हुआ तो औरतों का स्वरुप बदल गया! औरत पुरुष कि संपत्ति समझी जाने लगी बचपन में वह स्त्री पिता के अधीन्त्व रही युवावस्था में उसका अधिकार उसके पति को सौंप दिया गया वृद्धावस्था में उसी स्त्री को अपने पुत्र के अधीनस्थ होकर तथा विवाह से पहले कुमारित्व भंग न हो तथा आजीवन पवित्रता बनाये रखना एक धार्मिक नीति व नियम बना दिया गया!
सच पूंछो तो आरम्भ से अब तक नारी स्वतंत्रता के विरूद्ध ही परंपरा बनायीं गयी औरयह पुरुष नारी पर तब से आज तक उस पर अपना नियंत्रण बनाने का प्रयास करता रहा है !
आज के परिवेश में जहाँ वैश्वीकरण की बात की जा रही है जहाँ युग बदल रहा है वहीँ नारी स्वतंत्रता पुरानी परम्पराओं पर दम तोड़ रहीं हैं नारी नारी न होकर देवी शक्ति , विदुषी, पत्नी, माँ, पुत्री और दूसरे स्वरुप में नीच,कुलटा ,मया , वैश्या की संज्ञा में आती है पर अपने स्वरुप में प्रश्नचिन्ह है
आज प्रश्न यह उठताहै कि समाज की मानसिकता यही रहेगी इक्कीसवीं शताब्दी में नारी अपने अस्तित्व को तलाश रही है निर्दोष बालाओं कि भ्रूण हत्या नीरूपमा जैसी लड़कियों को मृत्युदंड या आत्महत्या पूनम जैसी लड़कियों को अकारण मृत्यु कैसी है यह आधुनिक समाज का स्वरुप क्या स्त्री की स्वतंत्रता को मान मिलेगा या बार बार यूँ ही हत्या करके अपमानित करता रहेगा आज के परिवेश में देखें तो कन्या जन्म पाप के सामान होता है सौ प्रतिशत शिशु भ्रूण हत्या में निन्यानवे प्रतिशत कन्या भ्रूण होते है दहेज़ सामाजिक अपराध है पर फिर भी यह अपराध निरंतर हो रहा है और हर दिन कोई न कोई महिला इस प्रथा का शिकार हो रही है तथा समाज की नींद कुम्भकरण की नींद है कि टूटती ही नहीं आज भी नारी अपने समस्त अधिकारों से वंचित है इसके लिए सारे नियम-क़ानून कानूनी किताब में दफन है और न ही वो इसका कोई लाभ उठा पा रही है इसी वजह से वैधानिक अधिकार की सत्यता इसके लिए आज भी ज़मीं असमान का अंतर है आज भी ९०% महिलाओं का दायरा घर परिवार रिश्ते नाते तक सिमित है और वो चाहकर भी अपने बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है हर पल एक नए कटघरे में खड़ी रहती है
काश नारी अपने स्वरुप को जान शर्म हया आसमान का दर्पण छोड़ सच्चे आसमान के निचे खड़ी हो खुलकर पूरी सांस ले सके तथा समाज को अपना योगदान दे सके यही मेरी अंतर इच्छा है
हमारी समाज की मानसिकता कहाँ जा रही है ? कहीं लड़कियों को उनके घरवाले मौत के घाट उतार रहे हैं तो कहीं जहाँ वो नौकरी करती हैं वहां उनका शारीरिक आत्मिक शोषण हो रहा है यदि कोई महिला इसके विरुद्ध खड़ी हो जाती है तो यह समाज उसे मृत्युदंड दे देता है क्या उसे इन घटनाओं पर कोई दुःख नहीं होता ? यह सोचने की बात है यह कैसी मानसिकता है कि एक स्त्री स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छानुसार अपना जीवन-यापन नहीं कर सकती और न ही समाज उसे इसकी इज़ाज़त देता है जो इस नियम-कानून को नहीं मानती उसे समाज से मृत्युदंड ही मिलता है हमारे पुराण नारी को देवी का दर्जा तो देते हैं पर उसे स्वतंत्र रहने की इज़ाज़त नहीं देते यूँ तो भगवान् शिव को अर्धनारीश्वर कहते हैं पर समाज स्त्रियों को पुरुषों के बराबर दर्जा देने से अभी भी कतराता है
यदि स्त्री की स्थिति पुरुषों के समान है तो आज भी स्त्रियों से दोगला व्यवहार क्यूँ? हमारे पुराण कहते हैं कि स्त्री का स्थान पुरुषों से भी उच्च है पर समाज कहता है कि स्त्रियों को ऊंचा उठने मत देना यह है आज भी ८०% नारियों की स्थिति !
"द सेकंड सेक्स" नामक पुस्तिका में सीमीन-द-बुआ ने कहा है कि मातृत्व सतात्मक समाज में स्त्रियों को आचरण की सुविधा थी तथा स्त्रियों की शुद्धता एक सुचिता की अपेक्षा कम की जाती थी तथा नारी को उस समाज में पूर्ण स्वतंत्रता थी पर जैसे जैसे समाज बदला और पितृ सतात्मक में हुआ तो औरतों का स्वरुप बदल गया! औरत पुरुष कि संपत्ति समझी जाने लगी बचपन में वह स्त्री पिता के अधीन्त्व रही युवावस्था में उसका अधिकार उसके पति को सौंप दिया गया वृद्धावस्था में उसी स्त्री को अपने पुत्र के अधीनस्थ होकर तथा विवाह से पहले कुमारित्व भंग न हो तथा आजीवन पवित्रता बनाये रखना एक धार्मिक नीति व नियम बना दिया गया!
सच पूंछो तो आरम्भ से अब तक नारी स्वतंत्रता के विरूद्ध ही परंपरा बनायीं गयी औरयह पुरुष नारी पर तब से आज तक उस पर अपना नियंत्रण बनाने का प्रयास करता रहा है !
आज के परिवेश में जहाँ वैश्वीकरण की बात की जा रही है जहाँ युग बदल रहा है वहीँ नारी स्वतंत्रता पुरानी परम्पराओं पर दम तोड़ रहीं हैं नारी नारी न होकर देवी शक्ति , विदुषी, पत्नी, माँ, पुत्री और दूसरे स्वरुप में नीच,कुलटा ,मया , वैश्या की संज्ञा में आती है पर अपने स्वरुप में प्रश्नचिन्ह है
आज प्रश्न यह उठताहै कि समाज की मानसिकता यही रहेगी इक्कीसवीं शताब्दी में नारी अपने अस्तित्व को तलाश रही है निर्दोष बालाओं कि भ्रूण हत्या नीरूपमा जैसी लड़कियों को मृत्युदंड या आत्महत्या पूनम जैसी लड़कियों को अकारण मृत्यु कैसी है यह आधुनिक समाज का स्वरुप क्या स्त्री की स्वतंत्रता को मान मिलेगा या बार बार यूँ ही हत्या करके अपमानित करता रहेगा आज के परिवेश में देखें तो कन्या जन्म पाप के सामान होता है सौ प्रतिशत शिशु भ्रूण हत्या में निन्यानवे प्रतिशत कन्या भ्रूण होते है दहेज़ सामाजिक अपराध है पर फिर भी यह अपराध निरंतर हो रहा है और हर दिन कोई न कोई महिला इस प्रथा का शिकार हो रही है तथा समाज की नींद कुम्भकरण की नींद है कि टूटती ही नहीं आज भी नारी अपने समस्त अधिकारों से वंचित है इसके लिए सारे नियम-क़ानून कानूनी किताब में दफन है और न ही वो इसका कोई लाभ उठा पा रही है इसी वजह से वैधानिक अधिकार की सत्यता इसके लिए आज भी ज़मीं असमान का अंतर है आज भी ९०% महिलाओं का दायरा घर परिवार रिश्ते नाते तक सिमित है और वो चाहकर भी अपने बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है हर पल एक नए कटघरे में खड़ी रहती है
काश नारी अपने स्वरुप को जान शर्म हया आसमान का दर्पण छोड़ सच्चे आसमान के निचे खड़ी हो खुलकर पूरी सांस ले सके तथा समाज को अपना योगदान दे सके यही मेरी अंतर इच्छा है
समुद्र कब तक शांत रहेगा
सैलाब आएगा
अपने साथ कुछ अच्छा
कुछ बुरा छोड़ जायेगा
पर सच यही है
यहीं से नए युग का
अध्याय शुरू होगा
सैलाब आएगा
अपने साथ कुछ अच्छा
कुछ बुरा छोड़ जायेगा
पर सच यही है
यहीं से नए युग का
अध्याय शुरू होगा
1 comment:
--यह नारी समानता , स्वतन्त्रता या वास्तव में नारी-पुरुष का सवाल ही नहीं है ...चाहे जितना ढोल पीटते रहिये..सदैव एक प्रश्न चिन्ह ही रहेगा .यही स्थिति हज़ार वर्ष पहले थी यही आज है...आज यह पुरा काल से अधिक ही है ---वास्तव में यह अनाचार-दुराचरण का मामला है...स्त्री-पुरुष अनाचरण का...और जिसकी लाठी उसकी भेंस का .....--और समाधान सिर्फ ..सदाचरण है....दोनों ओर से...
---ये सारे स्त्री-अत्याचार के मामले यूंही शौकिया, अकारण नहीं होते...अपितु प्रायः अन्य गहन कारण अन्तर्निहित होते हैं....
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