२१ वी शदी में भी भारत जैसा देश जातिवाद का बोझ ढो रहा है ! सच मानो में तो इसका नाम बदलकर भारतवर्ष न करके जातिवाद देश कर देना चाहिए, क्योकि यह पर हर कार्य जाति, धर्म और सामंतवादी के आधार पर किया जाता है! अब तो यह सोचना पड़ रहा है कि क्या कोई विषये है बिना जातिवाद के आधार पर ! यूँ तो हमारी हर सरकार हमेशा लोकतंत्र की दुहाई देती फिरती है, परन्तु आज के परिवेश में नागरिक आधिकारो पर मंडराता खतरा इस बात का सूचक है कि क्या आज भी हमारे देश में लोकतंत्र कि कोई निव बची है! अब यह सवाल उठता है !
सरकार ने १९५० में पि o डी o ए o ( प्रिवेन्टिव डिटेशन्शन एक्ट ) के द्वारा ही लोकतंत्र को समाप्त करने कि शुरुआत कर दी थी ! आजाद भारत में इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत सरकार द्वारा मीसा, एन एस ए , टाडा, पोंडा , गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून जैसे अनगिनत कानून बनादिये गये है, ताकि कोई भी सरकार की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के खिलाफ न बोल सके ! यही नहीं बहुत सारे दमनकारी कानून अंग्रेजो ने बनाये थे जो आज तक लागू है! सच्चाई तो यह है कि भारत का शासक वर्ग जब संकटग्रस्त होता है तब-तब राज्य का चरित्र दमनकारी हो जाता है, क्योंकि उसे लोकतंत्र व्यवस्था और नागरिक आजादी से खतरा पैदा हो जाता है !
आज के परिवेश में अगर देखे तो भारत को लोकतंत्र देश न कहकर भयतंत्र देश कहा जाये तो यह सच होगा ! हमारी आर्थिक, राजनितिक रूपरेखा केवल दमनकारी नीतियों पर ही निर्भर करती है ! अगर हम भारत के कुछ राज्यों में दृष्टिपात डाले तो जैसे छत्तीसगढ़ , झारखण्ड , बंगाल , उड़ीसा , सोनभद्र , बिहार और गुजरात जगह पर इनकी नीतिया दमनकारी तथा सामंतवादी ही रही है ! यदि ध्यान से अध्यान करे तो छत्तीसगढ़ , सोनभद्र , उड़ीसा , बिहार, मध्य प्रदेश कि आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग कि दशा दयनीय से दयनीय हो गई है ! एक तरफ तो सरकार उन पर माओवादी और आतंकवादी कहा कर घोर आत्याचार कर रही है! यदि हम छत्तीसगढ़ और सोनभद्र के परिवेश में देखे तो वह पर आदिवासी महिलायों के साथ दुराचार इस हद तक बढ़ गया है कि उनकी हालत दयनीय हो गयी है! आदिवासी महिलाओ के साथ बलात्कर,और अत्यंत तरह के दुराचार, अत्याचर जैसी यातनाए माओवादी , सामंतवादी लोग कर ही रहे है! वही प्रशाशन द्वारा नियुक्त सैन्यबल अधिकारी भी उनके मान सम्मान को जर्जर कर रहे है! आदिवासी को जबरजस्ती आतंकी कहा कर प्रताड़ित किया जा रहा है ! छत्तीसगढ़ में तो हल इतना बुरा है की किसी भी संगठन को तो ये आधिकार ही नहीं है कि सरकार के खिलाफ बोल सके! यदि पूर्व घटनो को अध्यन करे तो इसका सबसे बड़ा उद्धरण है कवि सरोज कि लाश खण्ड खण्ड करके रास्ते में फेक दी गयी थी! जहाँ पर आदिवासियों कि संख्या ८० लाख थी आज घट कर २० लाख रह गयी है! लोग या तो वह से पलायन कर चुके है ,या तो मार दिए गए है! वही दूसरी ओर उनकी सामंतवादी सत्ता उनसे उनके जिविकोउपर्जन के साधन छीन रही है ! हर प्रदेश में सरकार नक्सलवादी और माओवादी के नाम पर लोकतंत्र की जमीन पर जनता से युद्ध लड़ रही है
अभी हाल में आया हुआ भोपाल गैस कांड का खुलाशा इसकी दुश्प्रदा निति का सबसे बड़ा प्रमाण है ! आज हम गुजरात दंगे में चल रहे अब्बुबासर पर नजर डाले तो देखेंगे कि गुजरात के अलग अलग थानों पर ३५ मुक़दमे चल रहे है! और सब मुकदमो में ५० से १०० तक के गवाह है ऐसे में यदि वह बेगुनाह भी हुआ तो वह पूरा जीवन न्यायिक हिरासत में ही काटेगा! पर भोपाल गैस कांड में करीबन २५००० मौते हुई थी आज भी बच्चे अपांग पैदा हो रहे है इस नाते तो भोपाल गैस कांड में फसे लोगो पर २५००० लोगो द्वारा अलग अलग मुकदमा होना चाहिए पर सरकार का रवैया है , अंधेर नगरी चौपट राजा, यदि रस्सी का फंदा अगर बड़ा है तो मोटी गर्दन ढूढों चाहे अपराधी हो या न हो सजा तो देनी ही है ! सरकार तो उदारीकरण , निजिकरण और वैश्वीकरण निति पर अमल करती आ रही है और करती ही रहेगी! उसके लिए तो यह नीतिया कल्याणकारी है चाहे आम जनता भुखमरी के कगार पर क्यों न पहुच कर डीएम क्यों न तोड़ दे !
आज हर राज्यों में सरकार कि नितीय इसी प्रकार ही चल रही है! हम बेबस तथा लाचार होकर देख रहे है, यह यूँ कहे हम कुछ करना ही नही चाहते आज देश को फिर से लोहिया जैसे लौहपुरुष , गाँधी जैसे आहिंषावाद तथा सुभाष जैसे संगठनकारी महान वीरों की आवश्यकता है जो आधुनिक परिवेश में फिर से लोकतंत्र बहल कर सके और एक संगाठित जातिरहित समाज की स्थापना कर सके क्योंकि माओवादी और आतंकवादी जन्म से नहीं होते उनके हालात समय और राजनितिक गतिविधिया और लाचारगी उन्हें बनती है और इसके लिए जरूरी है कि हम आतंकवादी और माओवादी न पैदा करके एक अखंड सुसंस्कृत एवं स्वच्छय समाज का निर्माण कर सके !
मनु मंजू शुक्ला
संपादक : अवेध रिगल टाइम्ससमाज
सेविका : रिगल मानव सृजन सोकल वेल्फर सोसिटी
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