ओशो कहते है पाठ और पाठ में अंतर है ! कितना सही कहा है "यंत्रवत दोहर लेना कंठस्थ कर लेना पाठ नहीं ", पाठ का मतलब हृदयस्थ करना ! जब कभी हम नया वाहन चलाते है तो बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है यदि जरा सी चुक हुई तो दुर्घटना का भय बना रहता है! इसी तरह यदि हम से किसी भी प्रकार की चुक होती है तो जीवन बिखर जाता है! आप सोचते है आप कुशल हो गए यही सोच इन्सान की दुर्घटना देते! मनोवैज्ञानिक ने बताया है कि कुशल से कुशल वाहन चालक भी तीन से चार बजे ही किसी भी दुर्घटना का शिकार हो जाता है कारण वह क्षण गहरी नींद का क्षण होता है! ड्राइवर की आंख झपक जाती है और वह सोचता है कि सपने में उसे रास्ता दिखाई पड़ता है और तब तक दुर्घटना घट जाती है!
जीवन सचेतन का रास्ता है
इसे जानो इसे समझो
और पूरा जीओ
मानव मस्तिष्क में इतनी शक्ति है कि वो याद करे उसे वो हमेशा याद रख सकता है और उसे किसी भी पुस्तक कि अवश्यकता नहीं है मस्तिष्क कोई छोटी vastu नहीं, यह परमाणु केंद्र है इसमें इतनी शक्ति है जो यह हर चीज को अपने में समेट लेता है वो इसका सही इस्तेमाल करो, जीवन को जानकर शिक्षित न बनकर ज्ञानी बनो , ज्ञान को पाओ ज्ञान को जीओ ज्ञान संचेतना संग बहो न कि शिक्षा को कंठस्थ करना और बाटने पर जीवन को जाग्रत करना दूसरी बात है! पर यह सच है कि जागने से जीवन में प्राण आते है जागने से हम प्रकाशित एवं आलोकित होते है गीता, कुरान, बाइबिल का पाठ करने से तुम ज्ञान नहीं ले सकते न जीवन को जान सकते हो ! इसे जानकर केवल हजारो साल कि लिखी बातो के साथ चलते रहे हो ! आप जीवन को जीओ अपनी इच्छायों के साथ, जीवन को हर पल हर क्षण जीओ पुरे होश में जीओ ! यदि अज नही जिए तो याद रखना तो तुम जीवन के हर पल को खो दोगे ! मुठी बंधो अपितु बिखर जाओगे ! जैसे जैसे जीवन को जिओगे वैसे वैसे तुम आत्मानंद में आते जाओगे !
ओशो कहते है कि जिस दिन तुम नींद में भी जाग्रत हो जाओगे उस दिन तुम जान लेना कि तुमने अपने ऊपर विजय पा ली है ! यह सच तो है जाग्रत मन में क्या शेष है क्यू जीवन एक बार मिलता है इसे जी कर हमें जानना तथा इसका सुन्दर रूप निखारना है, यही सच्ची साधना है, यही ज्ञान, यही वैराग्य है एक एक पल जीवन का एक एक पाठ और एक एक पाठ बनकर एक जीवन किताब कि रचना करता है ! और एक नवल और अच्छी किताब कि रचना को जीवन के मंजुमय अनुराग तथा प्रकाशमय बनाये और हम एक किताब बन जाये !
हर क्षण हर क्षण
मैं चलता रहा
छाया को बस तरसता रहा
पल पल जीवन छलता रहा
अब और जीवन छलना है
छोड़ इन बातो को
बस जीवन को जीओ
न आधा न मध्य
जीवन को पूरा जीओ
रौशनी द्वार पर नहीं आयेगी
तुम खुद जो दीपक बनाओ
प्राण कि बाती सजा
ज्ञान कि रौशनी जगाओ
देख सूरज कि हर
किरण कहती है
तुम भी मुझ जैसा समां
ऐसे बनो हर
शब्द बनो का
तेरा वर बन जाये
और तुम प्रतिबिम्ब
कि प्रतिमा बना
अलोक हो जाओ
ओशो कहते है कि तुम जैसा सोचोगे वैसा ही होगा जिस प्रकार का जीवन देखोगे वही तुम्हे दिखेगा वो जो आज जीवन के सत्य को जानकर जीवन को +- समर्पित करो और जीवन को जीओ !
1 comment:
जीवन सचेतन है . चेतनापूर्ण रहना है ।
अच्छा आलेख ।
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