Monday, May 9, 2011

जब तुम कहते हो मै हूँ ना






जब तुम कहते हो मै हूँ ना
जीवन की सारी विवशताये दूर हो
उम्मीदों के पर लगा
मै उड़ने लगती हूँ

जब तुम कहते हो मै हूँ ना
सपनों की दुनिया से उठ
मै नए सपने के सूरज को
बुनने लगती हूँ

जब तुम कहते हो मै हूँ ना
मन में विश्वास जागता है
अपने होने का अहसास हो
जीवन उम्मीदों के नए सावन संग
बेहने लगती हूँ

जब तुम कहते हो मै हूँ ना
तब लगता है
मेरे रेगिस्तानी जीवन से मरुस्थल दूर हो
सावन की फुहार
पड़ने लगती है
और चातक बन
मै मदमस्त हो झूम उठी हूँ

जब तुम कहते हो मै हूँ ना
पतझर की तन्हैया दूर हो
इंद्र धनुसी रगों की छटा सजने लगती है

जब तुम कहते हो मै हूँ ना
मेरे निष्प्राण तन में
फिर से उम्मीदे जगजाती है
और मै आसमानी रंग में सज
आकाश की ऊचायो को छुने लगती हूँ


सच तुम्हारा होना
मेरे निष्प्राण ताना में जीवन डालता है
जो उम्मेदे मैने कबकी छोड़ दी थी
वो एक एक कर जागने लगी है
घुप्त अँधेरे की चदर ने जो मुझे घेरा था
वो धीरे धीरे छट गयी
रंगो की नव तरंग बन
आज खुद को खो
में मंजिल तन सज
सब भूल तुम्हारी रहो में
चल देती हूँ

1 comment:

इंकलाब said...

kise ko ahsas nahik ki wo qay,kon,aur kaisa hai.
khusiwo se tumhari jholi bhari rahe.
aamen